आज हम आप लोगों को कृतिका भाग-2 के कक्षा-10 का पाठ-3 (NCERT Solutions for Class-10 Hindi Kritika Chapter 3) के साना साना हाथ जोड़ि पाठ का सारांश (Sana Sana Hath Jodi Summary) के बारे में बताने जा रहे है जो कि मधु कांकरिया (Madhu Kankariya) द्वारा लिखित है। इसके अतिरिक्त यदि आपको और भी NCERT हिन्दी से सम्बन्धित पोस्ट चाहिए तो आप हमारे website के Top Menu में जाकर प्राप्त कर सकते हैं।
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 Sana Sana Hath Jodi Summary
लेखिका मधु कांकरिया (Madhu Kankariya) ने अपने यात्रा-वृतान्त में गैंगटॉक से लेकर हिमालय तक की यात्रा में प्राकृतिक दृश्य के वर्णन के साथ-साथ उन दृश्यों को भी छुआ है जिसमें विषम (कठिन) परिस्थितियों में भी पुरुष और महिलाएँ जीवन संघर्ष में लगी रहती है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि लेखिका के हृदय में उनके प्रति करुणा है। उनके प्रति वे सहृदय है, क्योंकि उसका मन प्रकृति की मनोहारी छटा देखने से अधिक जोखिम भरे कार्यों को करती हुई महिलाओं की ओर देखने में लगता है।
लेखिका को गैंगटॉक शहर देखकर ऐसा लगता है कि आसमान की सुन्दरता नीचे बिखर गई है और सभी तारे नीचे बिखर कर टिमटिमा रहे हैं। बादशाहों का एक ऐसा शहर जिसका सुबह, शाम, रात सब कुछ बहुत ही सुन्दर था। सुबह होते ही एक प्रार्थना उनके होठों को छूने लगी-साना-साना हाथ जोड़ि, गर्दहु प्रार्थना। हाम्रो जीवन तिम्रो कौसेली। (छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ कि मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो) लेखिका ने प्रार्थना की इस लाइन को आज सुबह ही एक नेपाली युवती से सीखे थे। लेखिका को सुबह यूमथांग के लिए निकलना था, किन्तु आँख खुलते ही बालकनी की ओर भागी थी, क्योंकि लोगों ने बताया था कि यदि मौसम साफ हो तो बालकनी से ही हिमालय की सबसे ऊँची चोटी दिखाई देती है। सबसे ऊँची चोटी कंचनजंघा। किन्तु पिछले वर्ष की तरह ही आज भी आसमान हल्के-हल्के बादलों में ढका था। कंचनजंघा तो नहीं दिखाई दी किन्तु तरह-तरह के रंग-बिरंगे इतने सारे फूल दिखाई दिए कि लगा कि फूलों के बाग में आ गई हूँ।
यूमथांग गैंगटॉक से 149 कि.मी. दूर था। जिसके बारे में ड्राइवर जितेन नार्गे बता रहा था कि सारे रास्ते में हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी और लेखिका उससे पूछने लगी थी-‘क्या वहाँ बर्फ मिलेगी?
यूमथांग के रास्ते में एक कतार में सफेद रंग की 108 पताकाएँ लगी थी जो शान्ति और अहिंसा के प्रतीक थे। इन सभी पताकाओं के ऊपर मन्त्र लिखे थे। जिनके बारे में नार्गे ने बताया था कि यहाँ बुद्ध की बड़ी मान्यता है। जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, तो उनकी आत्मा की शान्ति के लिए शहर से दूर किसी पवित्र स्थान पर ये 108 पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। इन्हें उतारा नहीं जाता है। ये पताकाएँ अपने आप धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं। कई बार नए कार्य की शुरुआत के लिए भी ऐसी पताकाएँ लगा दी जाती है परन्तु वे रंगीन होती हैं। नार्गे बोलते जा रहा था किन्तु लेखिका नार्गे की जीप में लगी दलाई लामा की तस्वीर की ओर देखे जा रही थी। लेखिका ऐसी दलाई लामा की तस्वीरें दुकानों पर भी टंगी देखी थीं।
रास्ते में जाते हुए कवी-लोंग स्टॉक पड़ा। जहाँ ‘गाइड’ फिल्म की शूटिंग हुई थी। यहाँ स्थानीय जातियों के बीच चले सुदीर्घ झगड़ों के बाद शान्ति वार्ता और सन्धि पत्र के बारे में नार्गे ने बताया। वहाँ से आगे बढ़े। रास्ते में एक कुटिया में घूमते हुए धर्म चक्र के बारे में नार्गे ने बताया कि यह प्रेअर-व्हील है। इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। हम लोग और आगे धीरे-धीरे ऊँचाई की ओर बढ़ रहे थे। कार्य करते हुए नेपाली युवक-युवतियाँ और छोटे-छोटे घर दिखाई दे रहे थे और हिमालय विराट रूप में दिखाई दे रहा था। हिमालय बड़ा होते-होते विशालकाय होने लगा। बड़े-बड़े पर्वतों के बीच और घाटियों के ऊपर बने सँकरें रास्तों से गुजरते ऐसा लग रहा था कि रंग-बिरंगे फूल मुस्करा रहे हों और हम किसी सघन हरियाली वाली गुफा के बीच हिचकोले खाते निकल रहे हों।
इस असीम बिखरी हुई सुंदरता को देखकर सैलानी झूम-झूम गा रहे थे। “सुहाना सफर और ये मौसम हंसी…।” किन्तु लेखिका एक ऋषि की तरह शान्त थी वह सारे दृश्य को अपने अंदर समाहित के लेना चाहती थी। वे जीप की खिड़की से आसमान को छूती हुई ऊँचे-ऊँचे पर्वतों के शिखरों को देखती, कभी चाँदी की तरह चमकती हुई तिस्ता नदी के सौन्दर्य को देखती, कभी शिखरों के भी शिखर से गिरते हुए झरने ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ को देखती जिसकी सुंदरता को सैलानी अपने-अपने कैमरों में कैद कर रहे थे। लेखिका जीप से उतरकर एक राजकुमारी-सी एक पत्थर के ऊपर बैठकर बहती जल धारा में पाँव डुबाया और भीतर तक भीग गई। मन काव्यमय हो उठा, सत्यता और सौन्दर्यता को छूने लगा। लेखिका को लगा कि उन अद्भुत क्षणों में जीवन की शक्ति का अहसास हो रहा है। मैं स्वयं भी देश और काल की सरहदों से दूर बहती धारा बन बहने लगी हूँ। हमारे अंदर स्थित सभी दुष्ट वासनाएँ इस निर्मल धारा में बह गई हैं। इतने में नार्गे बोलने लगा, आगे इससे भी सुन्दर नजारे मिलेंगे।
लेखिका अनमनी सी वहाँ से उठी और थोड़ी देर बाद फिर से वैसे ही नजारे आत्मा और आँखों को सुख देने वाले नजारे दिखे। लेखिका को यह सब देखकर आश्चर्य हो रहा था कि पल भर में ब्रह्मांड में कितना कुछ घटित हो रहा था कि सतत् प्रवाहमान झरने, नीचे बहती हुई तिस्ता नदी, ऊपर मँडराते आवारा बादल, हवा में धीरे-धीरे हिलोरे लेते हुए फूल, सब अपनी-अपनी लय में बहते हुए। यह देख लेखिका को एहसास हुआ कि-जीवन का आनन्द यही चलायमान सौन्दर्य में ही है। इस सौन्दर्य को देखकर उसे लगा कि मैं सचमुच ईश्वर के निकट हूँ और सुबह सीखी हुई प्रार्थना फिर होठों को छूने लगी-साना-साना हाथ जोड़ि…।
अचानक से लेखिका के मन से सौन्दर्य की छटा छिटक गई। ऐसे छिटक गई कि मानो नृत्यांगना के नूपुर अचानक टूट गए हों। उन्होंने देखा कि पहाड़ी औरतें पत्थरों पर बैठकर पत्थर तोड़ रही हैं। आटे गूंथने वाले कोमल हाथ की जगह कुदाल और हथौड़े! कितनों की पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे हुए थे। कुछ कुदाल को भरपूर ताकत के साथ जमीन पर मार रही थी।
इतने स्वर्गीय सुंदरता के बीच भूख, मौत, दैन्य और जिन्दा रहने का यह जंग! मातृत्व सेवा के साथ-साथ श्रम-साधना भी। वहीं खड़े बी.आर.ओ. के कर्मचारी से लेखिका पूछती है कि -‘यह क्या हो रहा है।’ उस कर्मचारी ने बताया कि जिन रास्तों से गुजरते आप हिमशिखरों से टक्कर लेने जा रही हैं। उन्हीं रास्तों को ये पहाड़ पर रहने वाली औरतें चौड़ा बना रही हैं।
लेखिका कहती है ‘बड़ा खतरनाक कार्य होगा’। उसने कहा-पिछले महीने तो एक की जान चली गई। जरा सी चूक हुई नहीं कि सीधे पाताल प्रवेश। तभी लेखिका को सिक्किम सरकार द्वारा लिखे बोर्ड की याद आई-जिस पर लिखा था (आप ताज्जुब करेंगे पर इन रास्तों को बनाने में लोगों ने मौत को झुठलाया है) यह याद कर लेखिका का मानसिक चैनल बदल गया। उसे पलामू और गुमला के जंगलों की याद आ गई। उसने वहाँ देखा था कि पीठ पर बच्चे को कपड़े से बाँधकर पत्तों की तलाश में वन-वन डोलती आदिवासी युवतियाँ। उन आदिवासी युवतियों के फूले हुए पाँव और इन पत्थर तोड़ती हुई पहाड़िनों के हाथों में पड़ी गाँठे। दोनों एक ही कहानी कहते हैं कि आम जिन्दगी की कहानी हर जगह एक-सी है कि सारी मलाई एक तरफ, सारे आँसू, अभाव, यातना और वंचना एक तरफ।
तभी लेखिका को गमगीन देखकर जितेन नार्गे ने कहा- ‘मैडम यह मेरे देश की आम जनता है। इन्हें तो आप कहीं भी देख लेंगी। आप इन्हें नहीं बल्कि पहाड़ों की सुन्दरता को देखिए जिसके लिए आप इतने पैसे खर्च करके आई है।” किन्तु लेखिका मन ही मन सोच रही थी कि ये देश की आम जनता नहीं है, जीवन का सन्तुलन भी हैं। ये कितना कम लेकर समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं। तभी लेखिका ने देखा कि वे श्रम करने वाली सुन्दरियाँ किसी बात पर खिल खिलाकर हँस पड़ी और ऐसा लगा कि जीवन लहरा उठा हो, सारा खण्डहर ताजमहल बन गया हो।
लेखिका लगातार ऊँचाइयों की ओर बढ़ रही थी। रास्ते में स्कूल से लौटते पहाड़ी बच्चे लिफ्ट माँग रहे थे तभी लेखिका कहती है- क्या स्कूल बस नहीं है? नार्गे बताता है कि ये बच्चे तीन या साढ़े तीन किलोमीटर ऊपर चढ़कर स्कूल जाते है। यहाँ का जीवन कठोर है यहाँ एक ही स्कूल है। दूर-दूर से बच्चे उसी स्कूल में जाते हैं। इस स्कूल में पढ़ने वाले अधिकाँश बच्चे अपनी माँओं के साथ काम करते हैं। आगे बढ़ते जा रहे थे खतरा भी बढ़ता ही जा रहा था। रास्ते सँकरे होते जा रहे थे। रास्ते में जगह-जगह लिखी हुईं चेतावनियाँ खतरों के प्रति सजग कर रही थीं।
सूरज ढल रहा था, उसी समय पहाड़ी औरतें गायें चराकर वापस अपने घर लौट रही थीं। कुछ लड़कियों के सिर पर लकड़ियों के भारी गट्ठर थे। आसमान बादलों से पूरी तरह घिरा हुआ था। जैसे-जैसे शाम हो रही थी जीप अब चाय के बागानों से गुजर रही थी। वहाँ दृश्य देखा कि चाय के भरे-भरे बागानों में कई युवतियाँ बोकू (सिक्किम-परिधान) पहने हुए चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। नदी की तरह उफान लेता योवन और श्रम से दमकता गुलाबी चेहरा देखकर मन्त्रमुग्ध-सी लेखिका चीख पड़ी। युवतियों का अधिक सौन्दर्य लेखिका के लिए असह्य था।
गगनचुम्बी पहाड़ों के नीचे एक छोटी सी बस्ती थी जिसका नाम था- लायंग। तिस्ता नदी के किनारे पर लकड़ी के बने घर में रुकी। अपनी सुस्ती दूर करने के लिए हाथ-मुंह धोकर तिस्ता नदी के किनारे पत्थरों पर बैठ गई । वातावरण में अद्भुत शान्ति, आँखें भर आई। लेखिका ने अनुभव किया कि ज्ञान का नन्हा सा बोधिसत्व जैसे भीतर उगने लगा। वहीं सुख शान्ति है, सुकून है जहाँ अखंडित सम्पूर्णता है-पेड़-पौधे, पशु, पक्षी और आदमी सब अपनी-अपनी लय, ताल और गति में हैं। आज की पीढ़ी ने प्रकृति की इस लय, ताल और गति से खिलवाड़ कर अक्षम्य अपराध किया है।
अँधेरा होने से पहले तिस्ता नदी की धार तक पहुँची। लकड़ी के बने छोटे से गैस्ट हाउस में रुके। रात गहराने लगी। जितेन ने गाना शुरू कर दिया। एक-एक सभी सैलानी गोल-गोल घेरा बनाकर नाचने लगे। लेखिका की पचास वर्षीया सहेली कमारियों भी नाचने लगी, जिसे देखकर लेखिका अवाक् रह गई।
लायुग की सुबह वह टहलने निकली। बर्फ की तलाश थी। कहीं बर्फ नहीं मिली। घूमते हुए सिक्किमी नवयुवक ने बताया कि बढ़ते प्रदूषण के कारण स्नो-फॉल लगातार कम होती जा रही है। 500 फीट ऊँचाई पर ‘कटाओ’ में बर्फ मिल जाएगी। फिर लेखिका ने ‘कटाओ’ की ओर सफर शुरू किया। बादलों को चीरती हुई खतरनाक रास्तों पर जीप आगे बढ़ रही थी। जगह-जगह चेतावनियाँ लिखी हुई थीं। सबकी साँसे रुकी हुईं थी फिर कटाओ के करीब पहुँचे। नार्गे ने बताया कि ‘कटाओ हिन्दुस्तान का स्विट्जरलैंड” है। आगे बढ़ने पर चारों ओर साबुन के झाग की तरह गिरी हुई बर्फ दिखा। सभी सैलानी जीप से उतर कर मस्ती से बर्फ में कूदने लगे। घुटनों तक नरम-नरम बर्फ। सब फोटो खींच रहे थे और लेखिका सोच रही थी कि शायद ऐसी ही विभोर कर देने वाली दिव्यता के बीच हमारे ऋषि-मुनियों ने वेदों की रचना की होगी। जीवन के मूल्यों को खोजा होगा। ‘सर्वे भवन्तु सुखिन’ का महामन्त्र पाया होगा। यह ऐसा सौन्दर्य जिसे बड़े से बड़ा अपराधी भी देख ले तो क्षणों के लिए ही सही करुणा का अवतार बुद्ध बन जाए। दूसरी ओर लेखिका की सहेली मणि भी दार्शनिक की तरह कह रही थी-‘ये हिम शिखर जल स्तम्भ हैं, पूरे एशिया के। देखो, प्रकृति भी किस नायाब ढंग से सारा इन्तजाम करती है। सर्दियों में बर्फ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गर्मियों में पानी के लिए जब त्राहि-त्राहि मचती है तो ये ही बर्फ शिलाएँ पिघल-पिघल जलधारा बन हमारे सूखे कण्ठों को तरावट पहुँचाती हैं। कितनी अद्भुत व्यवस्था है जल संचय की !” इस तरह नदियों का कितना उपकार है।
फिर सभी आगे बढ़े, थोड़ी दूर चीन की सीमा पर फौज की छावनियाँ दिखाई दी। जहाँ सैनिक माइनस 15 डिग्री सेल्सियस पर पहरा देते हैं। एक सैनिक लेखिका के पूछने पर बता रहा था कि आप चैन की नींद सो सकें, इसीलिए हम यहाँ पहरा देते हैं। लेखिका सोचने लगी कि जिन बर्फीले इलाकों में बैसाख के महीने में पाँच मिनट में हम ठिठुरने लगे तो ये हमारे जवान पौष, माघ के महीने में जब सब कुछ जम जाता है-तब कैसे तैनात रहते होंगे?
लायुंग से यूमथांग की ओर आगे बढ़े। यहाँ एक नया आकर्षण था। ढेरों रूडोडेंड्रो और प्रियता के फूल। इन घाटियों में बन्दर भी दिखाई दिए। हम यूमथांग पहुंचे। मंजिल तक पहुँचने की खुशी थी। वहाँ चिप्स बेचती सिक्किमी युवती से पूछा था-क्या तुम सिक्किमी हो तो उसने कहा-नहीं; मैं इण्डियन हूँ। यह सुन लेखिका को बहुत अच्छा लगा। वहाँ पहाड़ी कुत्ते भी थे जिन्हें देखकर मणि ने कुत्तों के बारे में बताया कि-ये पहाड़ी कुत्ते हैं ये भौंकते नहीं है। ये सिफ चाँदनी रात में ही भौंकते है। यह सुनकर लेखिका को आश्चर्य हुआ-क्या समुद्र की तरह कुत्तों पर भी चाँदनी कामनाओं का ज्वार-भाटा जगाती है।
जितेन तरह-तरह की जानकारियाँ देता रहा-यहाँ गुरुनानक जी के पैरों के फूट प्रिन्ट है लोग कहते है कि गुरुनानक जी के थाली से चावल गिरकर छटक गए थे। वहाँ अभी चावल की खेती होती है। नार्गे तीन किलोमीटर बाद फिर उंगली दिखाते हुए कहा- मैडम इस जगह को खेदुम कहते है यहाँ एक किलोमीटर तक देवी-देवताओं का निवास है, यहाँ जो गन्दगी फैलाएगा वह मर जाएगा। हम लोग यहाँ गन्दगी नहीं फैलाते हैं, हम पहाड़, नदी, झरने आदि की पूजा करते हैं। हम गैंगटॉक नहीं गंतोक(पहाड़) कहते हैं। जितेन गंतोक के बारे में बताता है कि सिक्किम के भारत में मिलने के बाद कप्तान शेखर दत्ता के सोच के अनुसार घाटियों में रास्ते निकाल कर टूरिस्ट-स्पॉट बनाया है। अभी भी रास्ते बन रहे हैं और नए स्थानों की खोज जारी हैं।
लेखिका मन ही मन सोचती है कि मनुष्य की असमाप्त खोज का नाम सौन्दर्य है। जीप आगे बढ़ने लगती है।
इस पोस्ट के माध्यम से हम कृतिका भाग-2 के कक्षा-10 का पाठ-3 (NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3) के साना साना हाथ जोड़ि पाठ का सारांश (Sana Sana Hath Jodi Summary) के बारे में जाने जो की मधु कांकरिया (Madhu Kankariya)द्वारा लिखित हैं । उम्मीद करती हूँ कि आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया होगा। पोस्ट अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूले। किसी भी तरह का प्रश्न हो तो आप हमसे कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकतें हैं। साथ ही हमारे Blogs को Follow करे जिससे आपको हमारे हर नए पोस्ट कि Notification मिलते रहे।