Mohan Rakesh ki Kahani Aadra summary | आर्दा कहानी का सारांश

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Mohan Rakesh ki Kahani Aadra summary | आर्दा कहानी का सारांश

 

          आज हम आप लोगों को आर्दा कहानी (Aadra Kahani) जो कि मोहन राकेश (Mohan Rakesh) द्वारा लिखित है, इस पाठ के सारांश (summary) बारे में बताने जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त यदि आपको और भी NCERT हिन्दी से सम्बन्धित पोस्ट चाहिए तो आप हमारे website के Top Menu में जाकर प्राप्त कर सकते है।

 आर्दा कहानी का सारांश | Mohan Rakesh ki Kahani Aadra summary 

          यह कहानी एक भाव-प्रवण माँ की कहानी है, जिसके दो पुत्र हैं बिन्नी और लाली। लाली बड़ा था और बिन्नी छोटा। अत: स्वभावत: उसके मातृवत्सल हृदय में बिन्नी के प्रति अधिक महत्त्व था। वह बिन्नी के पास रहती है। बिन्नी एक अत्यंत लापरवाह लड़का है, कई-कई दिन घर नहीं आता है। उसकी माँ प्रतिदिन ताजा खाना बनाती है, जो उसे अगले दिन बासी खाना पड़ता है। कभी-कभी बिन्नी अपने कई मित्रों को लेकर घर आ जाता है और वे सब मिलकर निस्संकोच भाव से खाना खा जाते हैं। कभी-कभी बिन्नी की माँ (बचन) के लिए कुछ भी शेष नहीं रहता और वह भूखी ही रह जाती है। वह कभी कभी बहुत दुःखी हो जाती थी किंतु-‘उसे खुश होते भी देर नहीं लगती थी। बिन्नी इतना बड़ा होकर भी जब तब उससे बच्चों की तरह लाड़-प्यार करने लगता था। कभी उसकी गोद में सिर रखकर लेट जाता और कभी उसके घुटनों से गाल सहलाने लगता। ऐसे क्षणों में उसका हृदय पिघल जाता और वह उसके बालों पर हाथ फेरती हुई उसे छाती से लगा लेती। 

          एक दिन बचन के बड़े लड़के लाली का पत्र आया। बिन्नी ने पत्र पर सुनाया। पत्र में बड़े भैया लाली की बीमारी का उल्लेख था। पत्र में लिखा कि लाली का ब्लडप्रेशर फिर बढ़ गया। भैया ने माँ को बुलाने के लिए लिया था। माँ का हृदय बड़े पुत्र के स्वास्थ्य की बात सुनकर द्रवित हो गया। माँ के तत्काल लाली के यहाँ जाने का निश्चय किया।महीने के आखिरी दिन थे, बिन्नी के पास माँ को भेजने के लिए किराया भी नहीं था, तथापि बिन्नी ने पैसों की व्यवस्था की और माँ के लिए गाड़ी का टिकट ले आया। वह अपने साथ अपने मित्र शशि को भी ले आया था। दोनों ने खाने की मांग की। दोनों ने मिलकर सारा खाना समाप्त कर दिया। जब बिन्नी ने कहा ‘अब माँ, तू भी जल्दी से खा ले’ तो माँ ने झूठ ही बोल दिया कि वह तो खाना खा चुकी है। बिन्नी और उसका दोस्त, माँ को गाड़ी पर बिठा आए। माँ लाली के घर पहुँच गयी। जब पंद्रह दिन तक बिन्नी का कोई पत्र नहीं आया तो वह चिंतित हो उठी। 

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          लाली के घर पर भी माँ को लाली के स्वास्थ्य की पूरी चिंता रहती थी। वह बहू को नाना प्रकार के उपचार सुझाती थी। उसे बार-बार यह ख्याल होता था कि लाली अत्यधिक परिश्रम करता है और उसे पौष्टिक आहार नहीं मिलता है। माँ का हृदय अपने दोनों बच्चों के सुख-लाभ के लिए चिंतित बना रहता था। यद्यपि लाली के यहाँ नौकर-चाकर थे, करने धरने को कोई विशेष काम नहीं था किंतु माँ इस निष्क्रियता से भी ऊब गयी थी। वह तनिक भी कोई काम करती तो पुत्र लाली उन्हें मना कर देता। एक दिन वह चाय की ट्रे लेकर लाला के कमरे में चली गयी और बिन्नी की चिंता प्रकट करती है-‘इतने दिन हो गए बिन्नी की चिट्ठी नहीं आयी।’ लाली को भी बिन्नी की इस लापरवाही पर बहुत क्रोध आया। माँ की चिंता बराबर बढ़ रही थी। उसका मन एक विचित्र घ सकट को-सी स्थिति अनुभव कर रहा था। उसे बिन्नी की चिंता भी सत्ता थी किंतु वह लाली को भी दु:खी नहीं देख सकती थी। वह लाली को अप्रसन्न करके बिन्नी के यहाँ नहीं जाना चाहती थी। 

          लाली माँ के मन की दुविधा को समझगया। पहले तो उसने यही कहा ‘माँ अभी तो तू आयी ही है, दस-पंद्रह रोज में दिवाली है।’ इस पर भी वह अनुभव करता है कि माँ बिन्नी के यहाँ जाने को आतुर है। अंततः वह माँ से कह उठा-‘जाना है, चली जा, नहीं खामख्वाह चिंता से परेशान रहेगी।’ माँ के मन की बात हो गयी। उसने उसी रात को गाड़ी से बिन्नी के यहाँ जाने की इच्छा प्रकट की। लाली ने भी कोई रोक-टोक नहीं की। 

          जाते-जाते भी माँ का हृदय दुविधा में फँसा हुआ था। बिन्नी के यहाँ जाते समय उसका मन लाली के बारे में चिंतत हो उठा था। जाते-जाते वह लाली से कहने लगी-‘तेरी तबीयत की चिंता रहेगी…तू चिट्ठी लिखता रहेगा ना।’ लाली माँ को आश्वस्त करते हुए कहता है कि-‘यदि वह नहीं लिख सकेगा तो उसकी पत्नी कुसुम लिख देगी।’ 

          माँ बिन्नी के यहाँ के लिए चल पड़ी। उसको छोड़ने के लिए लाली की पत्नी कुसुम स्टेशन तक आयी। गाड़ी के छूटते-छूटते भी वह कुसुम को नाना प्रकार की सीख देती रही-‘तुम लाली की तबीयत का पता देती रहना ….रात को उसे देर-देर तक न पढ़ने देना और उससे कहना कि सिर में बादामरोगन डलवा लिया करें। 

          प्लेटफार्म छूट गया। माँ बिन्नी के विचारों में खो गयी। उसे धीरे-धीरे बिन्नी के तंग और छोटे से कमरे का ध्यान आया। उन्हीं विचारों में डबी हई माँ बिन्नी के यहाँ चली जा रही थी। 

          इस पोस्ट के माध्यम से हम आर्दा कहानी (Aadra Kahani) के सारांश के बारे में जाने । जो कि मोहन राकेश (Mohan Rakesh) द्वारा लिखित हैं । उम्मीद करती हूँ कि आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया होगा। पोस्ट अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूले। किसी भी तरह का प्रश्न हो तो आप हमसे कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकतें हैं। साथ ही हमारे Blogs को Follow करे जिससे आपको हमारे हर नए पोस्ट कि Notification मिलते रहे।

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