महात्मा गाँधी ।। जीवन परिचय : Mahatma Gandhi Jeevan Parichay in hindi


जब भी हम अपने देश भारत के इतिहास की बात करते हैं, तो स्वतंत्रता संग्राम की बात जरुर होती हैं और इस स्वतंत्रता संग्राम में किन – किन सैनानियों ने अपना योगदान दिया, उन पर भी अवश्य चर्चाएँ होती हैं। इस स्वतंत्रता संग्राम में दो तरह के सेनानी हुआ करते थे ।
पहले : जो अंग्रेजों द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों का जवाब उन्हीं की तरह खून – खराबा करके देना चाहते थे, इनमें प्रमुख थे चंद्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह, आदि।
दूसरे : तरह के सेनानी थे, जो इस खूनी मंज़र के बजाय शांति की राह पर चलकर देश को आज़ादी दिलाना चाहते थे, इनमें सबसे प्रमुख नाम हैं महात्मा गाँधी का। उनके इसी शांति, सत्य और अहिंसा का पालन करने वाले रवैये के कारण लोग उन्हें ‘महात्मा’ संबोधित करने लगे थे।
महात्मा गाँधी का प्रारंभिक जीवन
महात्मा गाँधी का जन्म भारत के गुजरात राज्य के पोरबंदर क्षेत्र में हुआ था। उनके पिता श्री करमचंद गाँधी पोरबंदर के ‘दीवान’ थे और माता पुतलीबाई एक धार्मिक महिला थी। गाँधीजी के जीवन में उनकी माता का बहुत अधिक प्रभाव रहा । उनका विवाह 13 वर्ष की उम्र में ही हो गया था और उस समय कस्तूरबा 14 वर्ष की थी।
नवंबर, सन् 1887 में उन्होंने अपनी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी और जनवरी, सन् 1888 में उन्होंने भावनगर के सामलदास कॉलेज में दाखिला लिया था और यहाँ से डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वे लंदन गये और वहाँ से बेरिस्टर बनकर लौटे।
महात्मा गाँधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
सन् 1894 में किसी क़ानूनी विवाद के संबंध में गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका गये थे और वहाँ होने वाले अन्याय के खिलाफ ‘अवज्ञा आंदोलन [Disobedience Movement]’ चलाया और इसके पूर्ण होने के बाद भारत लौटे।
महात्मा गाँधी का भारत आगमन और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना
सन् 1916 में गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटे और फिर हमारे देश की आज़ादी के लिए अपने कदम उठाना शुरू किया । सन् 1920 में कांग्रेस लीडर बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु के बाद गाँधीजी ही कांग्रेस के मार्गदर्शक थे ।
सन् 1914 – 1919 के बीच जो प्रथम विश्व युध्द हुआ था, उसमें गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार को इस शर्त पर पूर्ण सहयोग दिया, कि इसके बाद वे भारत को आज़ाद कर देंगे. परन्तु जब अंग्रेजों ने ऐसा नहीं किया, तो फिर गाँधीजी ने देश को आज़ादी दिलाने के लिए बहुत से आंदोलन चलाये । इनमें से कुछ आंदोलन निम्नानुसार हैं -:
सन् 1920 में असहयोग आंदोलन [Non Co-operation Movement],
सन् 1930 में अवज्ञा आंदोलन [Civil Disobedience Movement],
सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन [Quit India Movement].
वैसे तो गाँधीजी का संपूर्ण जीवन ही एक आंदोलन की तरह रहा, परन्तु उनके द्वारा मुख्य रूप से 5 आंदोलन चलाये गये, जिनमें से 3 आंदोलन संपूर्ण राष्ट्र में चलाये गए और बहुत सफल हुए और इसलिए लोग इनके बारे में जानकारी भी रखते हैं । गाँधीजी द्वारा चलाये गये इन सभी आन्दोलनों को हम निम्न प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं
प्रमुख आंदोलन
सन् 1920 में : असहयोग आंदोलन [Non Co-operation Movement]
सन् 1930 में : अवज्ञा आंदोलन / नमक सत्याग्रह आंदोलन / दांडी यात्रा [Civil Disobedience Movement / Salt Satyagrah Movement / Dandi March]
सन् 1942 में : भारत छोड़ो आंदोलन [Quit India Movement]
अन्य आंदोलन / प्रारंभिक चरण के आंदोलन
सन् 1918 में : चंपारन और खेड़ा सत्याग्रह
सन् 1919 में : खिलाफत आंदोलन [Khilafat Movement]
सन् 1918 में चंपारन और खेड़ा सत्याग्रह
गाँधीजी द्वारा सन् 1918 में चलाया गया ‘चंपारन और खेड़ा सत्याग्रह’ भारत में उनके आंदोलनों की शुरुआत थी और इसमें वे सफल रहे । ये सत्याग्रह ब्रिटिश लैंडलॉर्ड के खिलाफ चलाया गया था, इन ब्रिटिश लैंडलॉर्ड द्वारा भारतीय किसानों को नील [indigo] की पैदावार करने के लिए जोर डाला जा रहा था और इसी के साथ हद तो यह थी कि उन्हें यह नील एक निश्चित कीमत पर ही बेचने के लिए भी विवश किया जा रहा था और भारतीय किसान ऐसा नहीं चाहते थे, तब उन्होंने महात्मा गाँधी की मदद ली। इस पर गाँधीजी ने एक अहिंसात्मक आंदोलन चलाया और इसमें सफल रहे और अंग्रेजों को उनकी बात माननी पड़ी।
इसी वर्ष खेड़ा नामक एक गाँव, जो गुजरात प्रान्त में स्थित हैं, वहाँ बाढ़ आ गयी और वहाँ के किसान ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये जाने वाले टैक्स भरने में असक्षम हो गये । तब उन्होंने इसके लिए गाँधीजी से सहायता ली और तब गाधीजी ने ‘असहयोग’ नामक हथियार का प्रयोग किया और किसानों को टैक्स में छूट दिलाने के लिए आंदोलन किया। इस आंदोलन में गाँधीजी को जनता से बहुत समर्थन मिला और आखिरकार मई, 1918 में ब्रिटिश सरकार को अपने टैक्स संबंधी नियमों में किसानों को राहत देने की घोषणा करनी पड़ी।
सन् 1919 में खिलाफत आंदोलन
सन् 1919 में गाँधीजी को इस बात का एहसास होने लगा था कि कांग्रेस कहीं न कहीं कमज़ोर पड़ रही हैं तो उन्होंने कांग्रेस की डूबती नैया को बचाने के लिए और साथ ही साथ हिन्दू – मुस्लिम एकता के द्वारा ब्रिटिश सरकार को बाहर निकालने के लिए अपने प्रयास शुरू किये। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वे मुस्लिम समाज के पास गये। खिलाफत आंदोलन वैश्विक स्तर पर चलाया गया आंदोलन था, जो मुस्लिमों के कालिफ [Caliph] के खिलाफ चलाया गया था। महात्मा गाँधी ने संपूर्ण राष्ट्र के मुस्लिमों की कांफ्रेंस रखी और वे स्वयं इस कांफ्रेंस के प्रमुख व्यक्ति भी थे। इस आंदोलन ने मुस्लिमों को बहुत सपोर्ट किया और गाँधीजी के इस प्रयास ने उन्हें राष्ट्रीय नेता बना दिया और कांग्रेस में उनकी खास जगह भी बन गयी। परन्तु सन् 1922 में खिलाफत आंदोलन बुरी तरह से बंद हो गया और इसके बाद गाँधीजी अपने संपूर्ण जीवन ‘हिन्दू मुस्लिम एकता’ के लिए लड़ते रहे, परन्तु हिन्दू और मुस्लिमों के बीच दूरियां बढ़ती ही गयी।
सन् 1920 में असहयोग आंदोलन
विभिन्न आंदोलनों से निपटने के लिए अंग्रेजी सरकार ने सन् 1919 में रोलेट एक्ट पारित किया। इसी दौरान गाँधीजी द्वारा कुछ सभाएं भी आयोजित की गयी और उन्हीं सभाओं की तरह ही अन्य स्थानों पर भी सभाओं का आयोजन किया गया। इसी प्रकार की एक सभा पंजाब के अमृतसर क्षेत्र में जलियांवाला बाग में बुलाई गयी थी और वहाँ इस शांति सभा को अंग्रेजों ने जिस बेरहमी के साथ रौंदा था, उसके विरोध में गाँधीजी ने सन् 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया। इस असहयोग आंदोलन का अर्थ ये था कि भारतीयों द्वारा अंग्रेजी सरकार की किसी भी प्रकार से सहायता ना की जाये, परन्तु इसमें किसी भी तरह की हिंसा नहीं हो।
विस्तृत वर्णन
यह आंदोलन सितम्बर, 1920 से शुरू हुआ और फेब्रुअरी, 1922 तक चला था। गाँधीजी द्वारा चलाये गये 3 प्रमुख आंदोलनों में से यह पहला आंदोलन था। इस आंदोलन को शुरू करने के पीछे महात्मा गाँधी की ये सोच थी कि भारत में ब्रिटिश सरकार केवल इसीलिए राज कर पा रही है, क्योंकि उन्हें भारतीय लोगों द्वारा ही सपोर्ट किया जा रहा हैं, तो अगर उन्हें ये सपोर्ट मिलना ही बंद हो जाये, तो ब्रिटिश सरकार के लिए भारतीयों पर राज कर पाना मुश्किल होगा, इसलिए गाँधीजी ने लोगों से अपील की कि वे ब्रिटिश सरकार के किसी भी काम में सहयोग न करें, परन्तु इसमें किसी भी प्रकार की हिंसात्मक गतिविधि शामिल न हो। लोगों को गाँधीजी की बात समझ में आयी और सही भी लगे। लोग बहुत बड़ी मात्रा में, बल्कि राष्ट्रव्यापी स्तर पर आंदोलन से जुड़ें और ब्रिटिश सरकार को सहयोग करना बंद कर दिया, इसके लिए लोगों ने अपनी सरकारी नौकरियां, फैक्ट्री, कार्यालय, आदि छोड़ दिए, लोगों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों और कॉलेजों से निकाल लिया, अर्थात् हर वो प्रयास किया, जिससे अंग्रेजों को किसी भी प्रकार की सहायता ना मिले। परन्तु इस कारण बहुत से लोग गरीबी और अनपढ़ होने जैसी स्थिति में पहुँच गये थे, परन्तु फिर भी लोग ये सब अपने देश की आज़ादी के लिए सहते रहे। उस समय कुछ ऐसा माहौल हो गया था कि शायद हमें तभी आज़ादी मिल जाती। परन्तु आंदोलन की चरम स्थिति पर गाँधीजी ने ‘चौरा – चौरी’ नामक स्थान पर हुई घटना के कारण इस आंदोलन को समाप्त करने का निर्णय ले लिया।
चौरा – चौरी कांड
चूँकि ये असहयोग आंदोलन संपूर्ण देश में अहिंसात्मक तरीके से चलाया जा रहा था, तो इस दौरान उत्तर प्रदेश राज्य के चौरा चौरी नामक स्थान पर जब कुछ लोग शांतिपूर्ण तरीके से रैली निकाल रहे थे, तब अंग्रेजी सैनिकों ने उन पर गोलियां चला दी और कुछ लोगों की इसमें मौत भी हो गयी. तब इस गुस्से से भरी भीड़ ने पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और वहाँ उपस्थित 22 सैनिकों की भी हत्या कर दी। तब गाँधीजी का कहना था कि “हमें संपूर्ण आंदोलन के दौरान किसी भी हिंसात्मक गतिविधि को नहीं करना था, शायद हम अभी आज़ादी पाने के लायक नहीं हुए हैं” और इस हिंसात्मक गतिविधि के कारण उन्होंने आंदोलन वापस ले लिया।
सन् 1930 में : सविनय अवज्ञा आंदोलन / नमक सत्याग्रह आंदोलन / दांडी यात्रा
सन् 1930 में महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के खिलाफ़ एक ओर आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का नाम था सविनय अवज्ञा आंदोलन । इस आंदोलन का उद्देश्य यह था कि ब्रिटिश सरकार द्वारा जो भी नियम कानून बनाये जाये, उन्हें नहीं मानना और उनकी अवहेलना करना। जैसे ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाया था कि कोई भी नमक नहीं बनाएगा, तो 12 मार्च सन् 1930 को उन्होंने इस कानून को तोड़ने के लिए अपनी ‘दांडी यात्रा’ शुरू की। वे दांडी नामक स्थान पर पहुंचे और वहाँ जाकर नमक बनाया था और इस प्रकार यह आंदोलन भी शांतिपूर्ण ढंग से ही चलाया गया। इस दौरान कई लीडर और नेता ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार किये गये थे।
विस्तृत वर्णन
गाँधीजी द्वारा नमक सत्याग्रह की शुरुआत 12 मार्च, सन् 1930 को गुजरात के अहमदाबाद शहर के पास स्थित साबरमती आश्रम से की गयी और यह यात्रा 5 अप्रैल, सन् 1930 तक गुजरात में ही स्थित दांडी नामक स्थान तक चली। यहाँ पहुंचकर गाँधीजी ने नमक बनाया और यह कानून तोड़ा और इस प्रकार राष्ट्रव्यापी अवज्ञा आंदोलन [Civil Disobedience Movement] की शुरुआत हुई। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण चरण था। यह ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक बनाये जाने के एकाधिकार पर सीधा प्रहार था और इसी घटना के बाद यह आंदोलन संपूर्ण देश में फ़ैल गया था। इसी समय अर्थात् 26 जनवरी, सन् 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ‘पूर्ण स्वराज’ की भी घोषणा कर दी थी। महात्मा गाँधी ने दांडी यात्रा 24 दिनों में पूरी की और इस दौरान उन्होंने साबरमती से दांडी तक लगभग 240 मील [390 कि. मी.] की दूरी तय की थी। यहाँ उन्होंने बिना किसी टैक्स का भुगतान किये नमक बनाया। इस यात्रा की शुरुआत में उनके साथ 78 स्वयंसेवक थे और यात्रा के अंत तक यह संख्या हजारों हो गयी थी। यहाँ वे 5 अप्रैल, सन् 1930 को पहुंचे और यहाँ पहुंचकर उन्होंने इसी दिन सुबह 6.30 बजे उन्होंने नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की और इसे भी हजारों भारतीयों ने मिलकर सफल बनाया।
यहाँ नमक बनाकर महात्मा गाँधी ने अपनी यात्रा जारी रखी और यहाँ से वे दक्षिण की ओर के समुद्र तटों की ओर बढ़े। इसके पीछे उनका उद्देश्य इन समुद्री तटों पर नमक बनाना तो था ही, साथ ही साथ वे कई सभाओं को संबोधित करने का भी कार्य कर रहे थे। यहाँ उन्होंने धरसाना नामक स्थान पर भी ये कानून तोड़ा था। 4 – 5 मई, सन् 1930 अर्द्धरात्रि को गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी और इस सत्याग्रह ने पूरे विश्व का ध्यान भारत के स्वतंत्रता संग्राम की ओर खींचा। ये सत्याग्रह पूरे वर्ष चला और गाँधीजी की जेल से रिहाई के साथ ही ख़त्म हुआ और वो भी इसीलिए क्योंकि द्वितीय गोल मेज सम्मेलन के समय वायसराय लार्ड इर्विन नेगोसिएशन के लिए राजी हो गये थे। इस नमक सत्याग्रह के कारण लगभग 80,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
गाँधीजी द्वारा चलाया गया यह नमक सत्याग्रह उनके ‘अहिंसात्मक विरोध ‘ के सिद्धांत पर आधारित था। इसका शाब्दिक अर्थ हैं – सत्य का आग्रह : सत्याग्रह। कांग्रेस ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और इसके लिए गाँधीजी को प्रमुख नियुक्त किया। इसी के तहत धरसाना में जो सत्याग्रह हुआ था, उसमें अंग्रेजी सैनिकों ने हजारों लोगों को मार दिया था, परन्तु अंततः इसमें गाँधीजी की सत्याग्रह नीति कारगर सिद्ध हुई और अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा। इस सत्याग्रह का अमेरिकन एक्टिविस्ट मार्टिन लूथर, जेम्स बेवल आदि पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा, जो सन् 1960 के समय में रंग – भेद नीति [ काले और गोरे लोगों में भेदभाव ] और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे। जिस तरह ये सत्याग्रह और अवज्ञा आंदोलन फ़ैल रहा था, तो इसे सही मार्गदर्शन के लिए मद्रास में राजगोपालाचारी और उत्तर भारत में खान अब्दुल गफ्फार खान को इसकी बागडोर सौपी गयी।
सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन
1940 के दशक तक आते – आते भारत की आज़ादी के लिए देश के बच्चे, बूढ़े और जवान सभी में जोश और गुस्सा भरा पड़ा था। तब गाँधीजी ने इसका सही दिशा में उपयोग किया और बहुत ही बड़े पैमाने पर सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। यह आंदोलन अब तक के सभी आंदोलनों में सबसे अधिक प्रभावी रहा, यह अंग्रेजी सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी।
विस्तृत वर्णन
सन् 1942 में महात्मा गाँधी द्वारा चलाया गया तीसरा बड़ा आंदोलन था -: भारत छोड़ो आंदोलन। इसकी शुरुआत महात्मा गाँधी ने अगस्त सन् 1942 में की गयी थी। परन्तु इसके संचालन में हुई गलतियों के कारण यह आंदोलन जल्दी ही धराशायी हो गया अर्थात यह आंदोलन सफल नहीं हो सका था। इसके असफल होने के पीछे कई कारण थे, जैसे इस आंदोलन में विद्यार्थी, किसान आदि सभी के द्वारा हिस्सा लिया जा रहा था और उनमें इस आंदोलन को लेकर बड़ी लहर थी और आंदोलन संपूर्ण देश में एक साथ शुरू नहीं हुआ अर्थात् आंदोलन की शुरुआत अलग – अलग तिथियों पर होने से इसका प्रभाव कम हो गया, इसके अलावा बहुत से भारतीयों को ऐसा भी लग रहा था कि यह स्वतंत्रता संग्राम का चरम हैं और अब हमें आज़ादी मिल ही जाएगी और उनकी इस सोच ने आंदोलन को कमजोर कर दिया। परन्तु इस आंदोलन से एक बात ये अच्छी हुई कि इससे ब्रिटिश शासकों को यह एहसास हो गया था, कि अब भारत में उनका शासन नहीं चल सकता, उन्हें आज नहीं तो कल भारत छोड़ कर जाना होगा।
इस तरह गाँधीजी द्वारा उनके जीवनकाल में चलाये गये सभी आंदोलनों ने हमारे देश की आज़ादी के लिए अपना सहयोग दिया और अपना बहुत गहरा प्रभाव छोड़ा।
आंदोलनों की विशेषता
महात्मा गाँधी ने जितने भी आंदोलन किये, उन सभी में कुछ बातें एक समान थी, जिनका विवरण निम्नानुसार हैं :
ये आंदोलन हमेशा शांतिपूर्ण ढंग से चलाये जाते थे।
आंदोलन के दौरान किसी भी प्रकार की हिंसात्मक गतिविधि होने पर गाँधीजी द्वारा वह आंदोलन रद्द कर दिया जाता था, यह भी एक कारण था कि हमें आज़ादी कुछ देर से मिली।
आंदोलन हमेशा सत्य और अहिंसा की नींव पर किये जाते थे।
महात्मा गाँधी का सामाजिक जीवन
गाँधीजी एक महान लीडर तो थे ही, परन्तु अपने सामाजिक जीवन में भी वे ‘सादा जीवन उच्च विचार ’ को मानने वाले व्यक्तियों में से एक थे। उनके इसी स्वभाव के कारण उन्हें लोग ‘महात्मा’ कहकर संबोधित करने लगे थे। गाँधीजी प्रजातंत्र के बड़े भारी समर्थक थे। उनके 2 हथियार थे ‘सत्य और अहिंसा ’। इन्हीं हथियारों के बल पर उन्होंने भारत को अंग्रेजों से आजाद कराया। गाँधीजी का व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि उनसे मिलने पर हर कोई उनसे बहुत प्रभावित हो जाता था।
छुआछूत को दूर करना
गाँधीजी ने समाज में फैली छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए बहुत प्रयास किये। उन्होंने पिछड़ी जातियों को ईश्वर के नाम पर ‘हरि – जन’ नाम दिया और जीवन पर्यन्त उनके उत्थान के लिए प्रयासरत रहें।
महात्मा गाँधी की मृत्यु
30 जनवरी सन् 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर महात्मा गाँधी की हत्या कर दी गयी थी। उन्हें 3 गोलियां मारी गयी थी और उनके मुँह से निकले अंतिम शब्द थे ‘हे राम’। उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में राज घाट पर उनका समाधी स्थल बनाया गया हैं।
गाँधीजी की कुछ अन्य रोचक बातें
राष्ट्रपिता का ख़िताब [Father of Nation] महात्मा गाँधी को भारत के राष्ट्रपिता का ख़िताब भारत सरकार ने नहीं दिया, अपितु एक बार सुभाषचंद्र बोस ने उन्हें राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था ।
गाँधीजी की मृत्यु पर एक अंग्रेजी ऑफिसर ने कहा था कि “जिस गाँधी को हमने इतने वर्षों तक कुछ नहीं होने दिया, ताकि भारत में हमारे खिलाफ जो माहौल हैं, वो और न बिगड़ जाये, उस गाँधी को स्वतंत्र भारत एक वर्ष भी जीवित नहीं रख सका ।”
गाँधीजी ने स्वदेशी आंदोलन भी चलाया था, जिसमें उन्होंने सभी लोगो से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने की मांग की और फिर स्वदेशी कपड़ों आदि के लिए स्वयं चरखा चलाया और कपड़ा भी बनाया ।
गाँधीजी ने देश – विदेश में कुछ आश्रमों की भी स्थापना की, जिनमें टॉलस्टॉय आश्रम और भारत का साबरमती आश्रम बहुत प्रसिद्द हुआ ।
गाँधीजी आत्मिक शुद्धि के लिए बड़े ही कठिन उपवास भी किया करते थे।
गाँधीजी ने जीवन पर्यन्त हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए प्रयास किया।
2 अक्टूबर को गाँधी जी जन्मदिवस पर समस्त भारत में गाँधी जयंती मनाई जाती है।