असम राज्य के जिन महापुरुषों के द्वारा धर्म क्रान्ति की स्थापना हुई, जिनके द्वारा सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक गतिविधियों का पुनर्जीवन हुआ और जिनकी अमर-वाणी का अक्षय प्रसाद पाकर असमिया साहित्य धन्य हुआ, गौरवान्वित हुआ, उनमें माधवदेव ( Madhav Dev ) का नाम बड़े ही आदर-पूर्वक लिया जाता है।
श्री माधवदेव ( Madhav Dev )के सबसे प्रिय अनुयायी (शिष्य) थे। इनका जन्म नवगाँव जिले के लेतुपुखरी नामक ग्राम में सन् 1489 ई. में हुआ था। माधवदेव ( Madhav Dev ) जन्मतः शाक्त थे, पर श्रीमन्त शंकरदेव के सम्पर्क में आकर ये वैष्णव हो गये। इन्होंने आजीवन वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया। ये अन्यान्य विषयों के परम ज्ञाता थे। इनमें संगीत विद्या की आश्चर्यजनक शक्ति थी। ये अपने युग के विख्यात गायक भी थे। इन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी होकर श्रीमन्त शंकरदेव द्वारा प्रसारित वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया। सन् 1596 ई. में इनकी इहलोक की लीला समाप्त हुई।
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माधवदेव ( Madhav Dev ) की रचनाएँ
माधव देव की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:
- ननामघोष (2) रामायण आदिकाण्ड (3) भक्ति-रत्नावली (4) नाम मालिका (5) राजसूय यज्ञ (6) जन्म-रहस्य (7) शंकरदेव कृत भक्ति रत्नाकर का भाष्य (8) चोर-धरा (9) पिंपरा-गुचोवा (10) भूमि-लेटोवा (11) भोजन विहार एवं (12) अर्जुन-भंजन।
‘नाम घोषा’ और ‘भक्ति-रत्नावली’ माधव देव की सर्वोत्कृष्ट रचनाएं हैं। ‘नामघोषा’ ग्रन्थ में एक हजार पद संग्रहित हैं। यह ग्रन्थ इनकी परिपक्व अवस्था की रचना है। इसमें गीता और उपनिषद की दार्शनिक भाव का पूर्णरूपेण सामञ्जस्य हुआ है। इसके तथ्यों का निरूपण बिल्कुल संगीतमय है। यह ग्रन्थ इनके आदर्श व्यक्तित्व की निशानी है। ‘भक्ति रत्नावली’ 12 अध्यायों में समाई हुई गूढ़ तत्वों से भरपूर मर्मस्पर्शी ग्रन्थ है। ‘बरगीत’ भी भक्ति-रस से सरावोर भक्त-हृदय का विहंगम अस्तित्व है। माधवदेव ( Madhav Dev ) की विनयशीलता एवं संगीतात्मक अभिव्यक्ति का अभिव्यञ्जन इसमें हुआ है। इनकी ‘हरि-भक्ति’ ध्रुव-तारे की तरह अचल भाव से स्थापित होकर कल्याणमय भक्तिपथ की ओर अग्रसर होने में हमें प्रेरित करता है।
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