George Pancham Ki Naak Summary Class 10 Kritika | जॉर्ज पंचम की नाक पाठ का सार

George Pancham Ki Naak Summary Class 10 Kritika | जॉर्ज पंचम की नाक पाठ का सार

George Pancham Ki Naak Summary Class 10 Kritika

George Pancham Ki Naak Summary Class 10 Kritika | जॉर्ज पंचम की नाक पाठ का सार

          आज हम आप लोगों को कृतिका भाग-2 के कक्षा-10  का पाठ-2 (NCERT Solutions for Class-10 Hindi Kritika Bhag-2 Chapter-2) के जॉर्ज पंचम की नाक पाठ का सारांश (George Pancham Ki Naak Summary) के बारे में बताने जा रहे है जो कि कमलेश्वर (Kamleshwar) द्वारा लिखित है। इसके अतिरिक्त यदि आपको और भी NCERT हिन्दी से सम्बन्धित पोस्ट चाहिए तो आप हमारे website के Top Menu में जाकर प्राप्त कर सकते हैं।       

George Pancham Ki Naak Summary | जॉर्ज पंचम की नाक पाठ का सार

          इस कहानी में उस समय के भारतीय सरकार की मानसिकता को व्यक्त किया गया है। वर्षों से हम जिनके गुलाम रहे उन अंग्रेजों के भारत से चले जाने पर भी हमारी परतन्त्रता की मानसिकता बनी हुई है। ब्रिटेन की ठसक इतनी है कि वहाँ की रानी एलिजाबेथ के भारत आने पर हम अपनी सभी प्रक्रियाओं को छोड़कर उनके आगमन की तैयारी और स्वागत में सम्पूर्ण सरकारी तन्त्र लग जाता है और जॉर्ज पंचम की टूटी नाक को लगाने के लिए अपना नाक काटने को तत्पर दिखाई देते हैं। इस प्रकार यह व्यंग्य प्रधान कहानी है।

          इग्लैण्ड की रानी एलिजाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ भारत पधारने वाली थीं। उनके आगमन की चर्चा रोज लन्दन के अखबारों में हो रही थी। तैयारियाँ चल रही थीं। रानी हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर कौन-कौन सा सूट पहनेंगी? इसे लेकर दर्जी परेशान था। उनके आने से पहले रानी के सेक्रेटरी आदि सुरक्षा की दृष्टि से दौरा कर लेना चाहते थे। फोटोग्राफरों की फौज तैयार हो रही थी। इग्लैंड के अखबारों में जो भी खबरें छपती थीं वे सब खबरें दूसरे दिन हिन्दुस्तानी अखबारों में चिपकी हुई नज़र आती थीं कि रानी ने एक ऐसा हल्के रंग का सूट बनवाया है कि जिसका रेशमी कपड़ा हिन्दुस्तान से मँगाया है, जिसका खर्च चार सौ पौण्ड आया है। फिर तो रानी के नौकरों, बावरचियों, खानसामों और अंगरक्षकों की पूरी जीवनियाँ अखबारों में छपने लगीं, यहाँ तक कि शाही महल के कुत्तों की भी तस्वीरें अखबारों में छप गईं। इस तरह शंख इग्लैण्ड में बज रहा था, गूंज हिन्दुस्तान में हो रही थी। राजधानी में शोर मचा हुआ था। देखते ही देखते पूरी दिल्ली बदलने लगी।

कृतिका भाग-2 ( गद्य खंड )

सारांश  प्रश्न-उत्तर 
अध्याय- 1 माता का आँचल प्रश्न-उत्तर 

NCERT / CBSE Solution for Class 9 (HINDI)

          इण्डिया गेट के सामने स्थित जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक अचानक गायब हो गई। हथियार बन्द पहरेदार पहरेदारी ही करते रहे और मूर्ति से नाक चोरी हो गई। हिन्दुस्तान के जिन लोगों की नाक मूर्तियों से गायब हो गई थी वे तो अजायबघरों में पहुँचा दी गई थीं, किन्तु रानी आएँ और जॉर्ज पंचम की नाक न हो, यह कैसे हो सकता है? चिन्ता बढ़ी, मीटिंग बुलाई गई। सभी चिन्तित थे कि यदि यह नाक नहीं है तो हमारी नाक नहीं रह जाएगी। मीटिंग में हुई निर्णय के अनुसार एक मूर्तिकार को दिल्ली में हाजिर होने के लिए हुक्म दिया गया। मूर्तिकार उपस्थित हुआ, उसने सभी उतरे हुए चेहरे देखे। उनकी बुरी हालत को देखकर मूर्तिकार की आखों में ही आँसू आ गए। तभी मूर्तिकार को एक आवाज सुनाई देती है कि “मूर्तिकार! जॉर्ज पंचम की नाक लगानी है।” मूर्तिकार ने हाँ कहते हुए कहा कि नाक लग जाएगी पर मुझे बताना होगा कि इस लाट का पत्थर कहाँ से लाया गया था? यह सुन सब हुक्कामों ने एक-दूसरे की ओर देखा और क्लर्क को बुलाकर उसे काम सौंपा गया कि पुरातत्व की फाइलें देखकर पता लगाओ कि यह लाट कब कहाँ बनी और पत्थर कहाँ से लाया गया? क्लर्क ने सभी फाइलें छानमारी पर कुछ पता नहीं चला। हुक्कामों की फिर सभा हई। सबके चेहरे पर उदासी छा गई। फिर एक कमेटी बनाकर उस नाक की जिम्मेदारी उस पर डाल दी गई।

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          मूर्तिकार को बुलाया गया। मूर्तिकार ने सभी को आश्वासन दिया कि आप लोग परेशान मत होइए। मैं हिन्दुस्तान के सभी पहाड़ पर जाकर ऐसा ही पत्थर खोजकर लाऊँगा। मूर्तिकार की यह बात सुनकर सभी कमेटी के लोगों की जान में जान आई। तभी वहाँ पर उपस्थित सभापति ने बड़े गर्व से कहा कि – ऐसी क्या चीज है जो हमारे हिन्दुस्तान में नहीं मिलती है। हर चीज हमारे देश के गर्भ में छिपी हुई है, जरूरत सिर्फ खोज करने की है। खोज करने के लिए मेहनत करनी होगी, इसी मेहनत का फल हमें मिलेगा… आने वाला जमाना बहुत ही खुशहाल होगा।

          सभापति का यह छोटा-सा भाषण अखबार में छप गया।

          मूर्तिकार पत्थर की खोज में निकल गया। मूर्तिकार कुछ दिन बाद निराश वापस लौटा। उसे वैसा पत्थर नहीं मिला। उसने सिर झुकाकर खबर दी कि- मैंने ‘हिन्दुस्तान का कोना-कोना खोज डाला परंतु इस तरह के किस्म का पत्थर कहीं भी नहीं मिला। यह शायद विदेशी पत्थर है। सभापति तैश में आ गए, बोले- “लानत है आपकी अकल पर! विदेशों की लगभग सभी चीजों को हम अपना चुके हैं जैसे- वहाँ के लोगों का दिल-दिमाग, वहाँ के तौर-तरीके और उनका रहन-सहन, जब अपने हिन्दुस्तान में बाल-डाँस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता है ?”

          सभापति ने जब मूर्तिकार को फटकार लगाई तब मूर्तिकार ने एक और सलाह देने के लिए इस शर्त पर कहा कि यह बात अखबार वालों तक न पहुँचे। यह सुनकर सभापति की आँखों में कुछ चमक आई और चपरासी से सभी दरवाजे बंद करा दिए। मूर्तिकार ने सलाह दी- “देश में अपने नेताओं की मूर्तियाँ भी हैं, यदि आप लोगों की इजाजत हो और आप सभी ठीक समझें तो मेरा मतलब है तो… जिस भी नेता की नाक इस लाट (मूर्ति) पर ठीक बैठे, उसे वहाँ से उतार लाया जाए।” यह सुनकर सभापति की कुछ खुशी लौटने लगी और उन्होंने धीरे से मूर्तिकार से कहा-“लेकिन बहुत ही होशियारी से।”

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          मूर्तिकार देश दौरे पर निकल पड़ा। एक के बाद दूसरे प्रदेश, एक मूर्ति के बाद दूसरी मूर्तियों की नाक टटोलने लगा, नापने लगा। दिल्ली से बम्बई पहुँचा। दादाभाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, जहाँगीर सबकी नाकें टटोलीं, गुजरात की ओर भागा-गाँधी जी, पटेल, महादेव देसाई की मूर्तियों को परखा और फिर बंगाल की ओर चला-वहाँ गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, सुभाष चन्द्र बोस, राजाराम मोहन राय सबकी नाकों की नाप ली। फिर बिहार होता हुआ उत्तर प्रदेश आया-आजाद, बिस्मिल, नेहरू, मालवीय की लाटों के पास गया। घबराहट में मद्रास पहुँचा। जहाँ-तहाँ मैसूर, केरल का दौरा करता हुआ पंजाब पहुँचा और लाला लाजपत राय और भगतसिंह की लाटों का सामना किया। और अंत में दिल्ली पहुँचकर अपनी मुश्किल को बताया कि – “मैं पूरे हिन्दुस्तान की परिक्रमा करके आ आया, सभी मूर्तियों को भी देख आया और सबकी नाकों को भी नाप लिया पर जॉर्ज पंचम की नाक इन सभी नाक से छोटी निकलीं।”

          मूर्तिकार से यह बयान सुनकर सारे हुक्काम (शासकीय अधिकारी) हताश होकर झुँझलाने लगे। मूर्तिकार ने आगे और बताया कि मैंने सुना कि बिहार सेक्रेटरिएट के सामने सन बयालीस में शहीद हुए बच्चों की मूर्तियाँ स्थापित हैं, शायद बच्चों की नाक फिट बैठ जाए। यह सोचकर वहाँ भी पहुँचा पर उन बच्चों की नाकें भी इससे कहीं बड़ी बैठती हैं। बताइए अब मैं क्या करूँ?

                    मूर्तिकार हार मानने वाला नहीं था। राजधानी में अन्य सभी तैयारियाँ चल रहीं थीं। जॉर्ज पंचम की लाट को मलकर नहला, रोगन कर तैयार कर दी गई थी। सिर्फ नाक न होने के कारण बड़े-बड़े हुक्कामों में खलबली मची हुई थी। इधर मूर्तिकार ने फिर शर्त दोहराई। कमरे के दरवाजे बन्द कर दिए गए जिसमें कमेटी बैठी हुई थी। मूर्तिकार ने फिर से एक नई योजना बनाया और सभी के सामने पेश किया कि -“नाक लगाना यदि बहुत ही जरूरी है, तो मेरी राय यह है कि चालीस करोड़ जनता में से कोई एक जिन्दा नाक काटकर लगा दी जाए…।” मूर्तिकार की इस योजना को सुनकर चारों तरफ सन्नाटा छा गया। सबको परेशान देखकर मूर्तिकार ने कहा-“आप लोग घबराते क्यों हैं? यह काम आप सब मेरे ऊपर छोड़ दीजिए। नाक को लोगों से चुनकर लेकर आना मेरा काम है। मुझे तो आपकी सिर्फ इजाजत चाहिए।” सभी लोग एक दूसरे से धीरे-धीरे बात करके मूर्तिकार को अनुमति दे दिए। अखबार में सिर्फ इतना छपाया गया कि नाक की  समस्या का हल हो गया और राजपथ पर स्थित इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक लग रही है।

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          मूर्ति के आस-पास का तालाब सुखाकर और साफ कर ताजा पानी डाला गया जिससे जिन्दा लगाई जाने वाली नाक सूख न जाए। रानी के आने का दिन नजदीक आता जा रहा था। मूर्तिकार खुद बताए हल से परेशान था। उसने फिर जिन्दा नाक लाने के लिए कमेटी से कुछ और मदद माँगी। वह उसे मदद यह कहते हुए दे दी गई कि उस दिन हर हालत में नाक लग जानी चाहिए। वह दिन आ गया और जॉर्ज पंचम के नाक लग गई, सभी अखबारों में खबर छपी कि जॉर्ज पंचम को जिन्दा नाक लगाई गई है-यानी ऐसी नाक जो कतई पत्थर की नहीं लगती।

          जिस दिन जॉर्ज पंचम के बुत पर जिन्दा नाक लगाई गयी उस दिन देश में किसी उद्घाटन की खबर नहीं थी, किसी ने कोई फीता नहीं काटा। कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई। कहीं किसी का अभिनन्दन नहीं हुआ, कोई मान-पत्र भेंट करने की नौबत नहीं आई। किसी हवाई अड्डे या स्टेशन पर स्वागत-समारोह नहीं हुआ। अखबार में किसी का चित्र नहीं छपा। सब अखबार खाली थे। पता नहीं ऐसा क्यों हुआ?

George Pancham Ki Naak Question Answers | जॉर्ज पंचम की नाक प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1. सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिन्ता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है?

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