NCERT Solutions for class 10: एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा पाठ का सार

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           आज हम आप लोगों को कृतिका भाग-2 के कक्षा-10  का पाठ-4 (NCERT Solutions for Class-10 Hindi Kritika Bhag-2 Chapter-4) के एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा पाठ का सारांश (Ehi Thaiyan Jhulni Ho Rama Summary) के बारे में बताने जा रहे है जो कि शिवप्रसाद मिश्र ( रुद्र ) (Shivprasad Mishra – Rudra) द्वारा लिखित है। इसके अतिरिक्त यदि आपको और भी NCERT हिन्दी से सम्बन्धित पोस्ट चाहिए तो आप हमारे website के Top Menu में जाकर प्राप्त कर सकते हैं।   

NCERT Solutions for class 10 hindi chapter 4 Ehi Thaiyan Jhulni Ho Rama Summary

प्रस्तावना– ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ (Ehi Thaiyan Jhulni Ho Rama) नामक इस पाठ में समाज से बहिष्कृत दुलारी के स्वभाव का चित्रण है। जहाँ वह अपने कठोर व्यवहार के लिए प्रसिद्ध है, वही कठोर हृदया दुलारी के मन के किसी कोने में करुणा भी है। वह उदार है। टुन्नू के प्रथम परिचय में टुन्नू के भाव का उसके हृदय पर प्रभाव पड़ता है। टुन्नू की अपने प्रति भावना को एक लहर मात्र मानने वाली दुलारी को यह समझने में देर नहीं लगी कि जिस वस्तु पर वह आसक्त है उसका सम्बन्ध शरीर से नहीं; आत्मा से है। वह टुन्नू की मौत से आहत हो उठी और उसकी दी हुई गांधीवादी धोती को पहन उसके प्रति आत्मीय श्रद्धा प्रकट की।

(1)

          महाराष्ट्र की महिलाओं की तरह दुलारी धोती लपेटे, कच्छ बाँधे, दंड लगा रही थी कि दुलारी के शरीर से पसीना निकल आया। अब दुलारी ने दंड को समाप्त करके, अंगोछे से पसीना पोंछकर, जूड़ा को खोलकर सिर का पसीना सुखाया और आइने के सामने खड़ी होकर अपनी भुजाओं को गर्व से देखते हुए प्याज के टुकड़े, हरी मिर्च के साथ चने चबा रही थी तभी दरवाजे पर टुन्नू आया, दुलारी ने जल्दी से कच्छ खोलकर अच्छे से धोती पहनकर दरवाजे को खोला। दुलारी ने आँखें मिलाते हुए कहा- ‘तुम फिर यहाँ टुन्नू? मैंने तुम्हें यहाँ आने के लिए मना किया था। इतने में टुन्नू दुखी मन से बगल से बंडल निकाल दुलारी के हाथों में दिया, दुलारी ने देखा जिसमें गांधी आश्रम की बनी खद्दर की साड़ी थी। देखते ही दुलारी चीख पड़ी और पूछा इसे तुम क्यों लाए? टुन्नू का जीर्ण वदन सूख गया। सूखे गले से कहा-होली का त्यौहार था। दुलारी चिल्लाई-होली का त्योहार था तो यहाँ क्यों आए, जलने के लिए तुम्हें कहीं चिता नहीं मिली। तुम मेरे कौन हो सो यहाँ चले आए। खैरियत चाहते हो तो इस कफन को लेकर सीधे चले जाओ। दुलारी ने धोती टुन्नू के पैरों में फेंक दी। टुन्नू के आँसू भर आए और टप-टप काजल से मलिन आँसू नीचे पड़ी धोती पर गिरने लगे। टुन्नू-“मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता” कह कर सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। टुन्नू को जाते हुए दुलारी भी देखती रही। उसकी भौं अभी वक्र थी परन्तु नेत्रों में कौतुक और कठोरता का स्थान करुणा और कोमलता ने ले लिया। उसने भूमि पर पड़ी धोती उठाई जिस पर काजल से सने आँसुओं के धब्बे पड़ गए थे; उसने एक बार फिर जाते हुए टुन्नू की ओर देखा और स्वच्छ धोती पर पड़े धब्बों को बार-बार चूमने लगी।

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(2)

          दुलारी का नाम गानेवालियों में था। उसके अंदर सवाल-जबाव करने की अद्भुत क्षमता थी। उसके सामने गाने में बड़े से बड़े शायर घबराते थे। एक बार खोजवाँ बाजार में भादों में तीज के अवसर पर कजली दंगल हुआ। इस दंगल में दुलारी ने कजली गाया। खोजवाँ वालों ने दुलारी को अपनी ओर होने से जीत पक्की समझ ली थी। दूसरी ओर बजरडीहा वालों की ओर से टुन्नू को गीत गाने के लिए बुलाया गया था। जब दंगल में सवाल जबाव के लिए दुक्कड़ पर चोट पड़ी तो बजरडीहा वालों की ओर से सोलह-सत्रह वर्ष का बालक टुन्नू, दुलारी की ओर हाथ उठाकर ललकार उठा-उसने गाना गाया। टुन्नु के गीत पर दुलारी को मुस्कुराते देख लोग हैरान थे बात-बात पर तीरकमान हो जाने वाली दुलारी आज अपने स्वभाव के प्रतिकल खड़ी-खड़ी मुस्कुरा रही है। दुलारी टुन्नू को मुग्ध खड़ी सुन रही थी। तब खोजवाँ वालों को अपनी विजय पर पूरा विश्वास न रह गया था कि वह आज जीत सकेंगे। टुन्नू का इस प्रकार लोगों के बीच में गाने का यह तीसरा-चौथा अवसर था। उसके पिता जी सत्यनारायण की कथा, श्राद्ध और विवाह में पंडित का कार्य करते थे। पुत्र टुन्नू को शायरी का चस्का लग गया था। उसने भैरोहेला को अपना उस्ताद बनाया और कजली की रचना करने में कुशल हो गया। इसी विशेषता के कारण बजरडीहा वालों ने उसे इस दंगल में अपनी ओर से बुलाया था। टुन्नू की शायरी पर उन्होंने वाह-वाह का शोर मचाकर आकाश को सिर पर उठा लिया जिससे खोजवाँ वालों का रंग उतर गया।

          दुलारी की बारी आई और अपनी दृष्टि मद-विह्वल बनाते हुए टुन्नू के दुबले-पतले शरीर को लेकर उसका स्वर फूटा-वह कह रही थी-वैसे तू बगुला भगत है। उसी की तरह तुझे भी हंस की चाल चलने का हौसला हुआ है, परन्तु कभी न कभी तेरे गले में मछली का काँटा जरूर अटकेगा और तेरी कलई खुल जाएगी। दुलारी के उत्तर में टुन्नू ने कहा-मन में जितना आए जी भर कर गालियाँ दो, पर अपने मन व्यथा को डंके की चोट पर सुनाएँगे। इस पर फेंकु सरदार लाठी लेकर टुन्नू को मारने दौड़े। दुलारी ने टुन्नू की रक्षा की। यही दोनों का प्रथम परिचय था। फिर उस दिन लोगों के बहुत कहने पर दोनों में से किसी ने गाना स्वीकार नहीं किया।

(3)

          टुन्नू वहाँ से चला गया, दुलारी सामान्य हो गई और सोचने लगी कि आज टुन्नू की वेशभूषा में अन्तर था, उसने पूछा नहीं; या पूछने का अवसर ही नहीं मिला। फिर दुलारी ने टुन्नू वाली धोती उठाई और सब कपड़ों के नीचे सन्दूक में रख दी। टुन्नू की दुर्बलता का अनुभव दुलारी को पहली ही मुलाकात में हो गया था किन्तु उसे लहर मात्र मानकर दुलारी ने छोड़ दिया था। टुन्नू दुलारी के पास आता और मन की कामना प्रकट किए बिना ही धीरे से खिसक जाता था। दुलारी टुन्नू के इस उन्माद पर मन ही मन हंसती थी। आज दुलारी को अनुभव हो रहा था कि टुन्नू का सम्बन्ध शरीर से न होकर आत्मा से है। आज तक टुन्नू के प्रति जो उपेक्षा दिखाई है। वह सब कृत्रिम थी। फिर भी वह यह स्वीकार करने के लिए तैयार न थी कि मेरे हृदय के किसी कोने में टुन्नू का आसन स्थापित है। वह अपने इस विचार में उलझती जा रही थी और इस उलझन से बचने के लिए चूल्हा जलाकर रसोई की व्यवस्था में जुट गई। इतने में फेंकू सरदार धोतियों का बंडल लिए प्रवेश किया। फेंकु ने धोतियों का बंडल पैरों में रखते हुए कहा-देखो कितनी बढ़िया धोतियाँ हैं। दुलारी ने बंडल पर ठोकर मारते हुए कहा-तुमने तो होली पर साड़ी देने का वादा किया था। फेंकू ने कहा रोजगार मन्दा चल रहा है वह वादा तीज पर पूरा कर दूंगा।

          उसी समय विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के लिए उन विदेशी वस्त्रों का संग्रह करते हुए ‘भारत जननि तेरी जय हो’ का गीत गाते हुए देश के दीवानों का दल भैरवनाथ की सँकरी गली में आया। बड़ी सी फैली हुई चादर पर पुराने धोती, साड़ी, कमीज, कुरता आदि की वर्षा हो रही थी। तभी सहसा दुलारी ने कोरी धोतियों का बंडल नीचे फैली चादर पर फेंक दिया। सबकी आँखें खिड़की की ओर उठीं वैसे ही खिड़की बन्द हो गई। जुलूस आगे बढ़ गया।

          जुलूस के पीछे चलते हुए खुफ़िया पुलिस के रिपोर्टर अली-सगीर ने यह दृश्य देखा। खिड़की का पल्ला फिर खुला और धड़ाके से बन्द हुआ तभी अली सगीर ने फेंकू को देख लिया। फेंकू पुलिस का मुखबर भी था।

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(4)

          दुलारी फेंकू को झाडू मार चिल्ला रही थी-निकल-निकल मेरी देहरी से। उसे इतना गुस्सा था कि चूल्हे पर रखी बटलोही की दाल ठोकर से उलट दी और चूल्हे की आग बुझ गई। दुलारी के हृदय में जल रही जो आग थी उस आग को पड़ोसिनें ने मीठे वचनों की जलधारा से बुझा रही थीं। दुलारी उनसे पूछ रही थी-बताओ टुन्नू कभी यहाँ आता है तभी नौ वर्षीय बालक झींगुर ने आकर समाचार सुनाया कि टुन्नू महाराज को गोरे सिपाहियों ने मार डाला और लाश भी उठा ले गए। इस समाचार को सुन दुलारी स्तब्ध रह गई। वह स्तब्ध हो गई और आँखों में मेघमाला घिर आई। वहाँ पर उपस्थित पड़ोसिनें ने कर्कशा दुलारी की हृदय की कोमलता को देख दंग रह गईं। दुलारी उठी और सबके सामने सन्दूक खोली। टुन्नू की दी हुई धोती जिस पर टुन्नु के आँसू के काले धब्बे पढ़े थे उसे पहन ली और तभी थाने से मुन्शी और फेंकू ने सूचना दी कि आज अमन सभा द्वारा आयोजित समारोह में गाना है।

(5)

          सह-सम्पादक ने दुलारी और टुन्नू के सम्बन्ध और टुन्नू की मौत की रिपोर्ट प्रधान सम्पादक को दी तो प्रधान सम्पादक झल्ला उठे-कि यह क्या अलिफ लैला की कहानी रंग लाए हो। यदि इस रिपोर्ट को छाप दूँ तो कल ही अखबार बन्द हो जाएगा और सम्पादक बड़े घर पहुंचा दिए जाएंगे। आपके सिवा इसका और कोई भी गवाह है। खबर पढ़िए और शीर्षक भी पढ़िए।

          झेंप भरी मुद्रा में कहा-एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! (Ehi Thaiyan Jhulni Ho Rama) सह-सम्पादक शर्माजी रिपोर्ट को पढ़ने लगे –

          छह अप्रैल को नेताओं की अपील पर पूरे नगर में हड़ताल रही, यहाँ तक खोमचों वालों ने नगर में फेरी नहीं लगाई। विदेशी वस्त्रों को संग्रह करने वालों का जुलूस निकल रहा था। जुलूस में कजली का प्रसिद्ध गायक टुन्नू भी था। टाउन हॉल पर जुलूस विघटित हो गया। पुलिस के जमादार अली समीर ने टुन्नू को पकड़ गाली दी। टुन्नू के प्रतिवाद करने पर सगीर ने पसली पर बूट की ठोकर मारी जिससे तिलमिला कर टुन्नू जमीन पर गिर गया और मुँह से एक चुल्लू खुन निकल गया। गोरे सैनिक गाड़ी में लादकर टुन्नू को ले गए और लोगों से कह दिया कि इसे अस्पताल ले जा रहे हैं। संवाददाता ने गाड़ी का पीछा कर पता लगाया कि टुन्नू वास्तव में मर गया था और रात के आठ बजे टुन्नू का शव वरुणा में प्रवाहित करते हुए हमारे संवाददाता ने देखा है।

          इस सिलसिले में यह भी उल्लेख है कि टुन्नू का दुलारी से सम्बन्ध था। उसी दुलारी से टाउन हाल में आयोजित समारोह में नचाया-गवाया गया था। उसे भी टुन्नू की मृत्यु का संदेश मिल चुका था। वह बहुत उदास थी। उसने खद्दर की धोती पहन रखी थी। पुलिस उसे जबरदस्ती ले आई थी। वह गाना नहीं चाहती थी क्योंकि आठ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या हो गई थी। उसे विवश होकर गाने के लिए खड़ा होना पड़ा। कुख्यात-अली सगीर ने मौसमी चीज गाने की फरमाइश की। उसने दर्द भरे गले से गाया-“एही ठैयाँ झुलनी हैरानी हो रामा, (Ehi Thaiyan Jhulni Ho Rama) कासों मैं पूछू?” उसकी दृष्टि बूट की ठोकर खाकर जहाँ टुन्नू गिरा था-वहीं थी। उसने गीत का दूसरा चरण गाया –

          सास से पूर्वी, ननदिया से पूछू, देवरा से पूछत लजानी हो रामा? ‘देवरा से पूछत’ कहते-कहते वह बिजली की तरह एक दम घूमी और अली समीर की ओर देखकर लजाने का अभिनय किया और उसकी आँखों से आँसू की बूंदें छहर उठीं या यों कहिए कि वे पानी की बूंदे भी जो वरुणा में टुन्नू की लाश फेंकने से छिटकी और अब दुलारी की आँखों में प्रकट हुईं। दुलारी का वैसा रूप पहले कभी न दिखाई पड़ा था-आँधी में भी नहीं, समुद्र में भी नहीं, मृत्यु के गम्भीर आविर्भाव में भी नहीं।”

सम्पादक ने कहा-“सत्य है परन्तु छप नहीं सकता।” 

         इस पोस्ट के माध्यम से हम कृतिका भाग-2 के कक्षा-10  का पाठ-4 (NCERT Solutions for Class-10 Hindi Kritika Bhag-2 Chapter-4) केएही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा पाठ का सारांश (Ehi Thaiyan Jhulni Ho Rama Summary) के बारे में  जाने जो की  शिवप्रसाद मिश्र ( रुद्र ) (Shivprasad Mishra – Rudra) द्वारा लिखित हैं । उम्मीद करती हूँ कि आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया होगा। पोस्ट अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूले। किसी भी तरह का प्रश्न हो तो आप हमसे कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकतें हैं। साथ ही हमारे Blogs को Follow करे जिससे आपको हमारे हर नए पोस्ट कि Notification मिलते रहे।

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