आज हम आप लोगों को कृतिका भाग-2 के कक्षा-10 का पाठ-4 (NCERT Solutions for Class-10 Hindi Kritika Bhag-2 Chapter-4) के एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा पाठ का प्रश्न-उत्तर (Ehi Thaiyan Jhulni Ho Rama Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है जो कि शिवप्रसाद मिश्र ( रुद्र ) (Shivprasad Mishra – Rudra) द्वारा लिखित है। इसके अतिरिक्त यदि आपको और भी NCERT हिन्दी से सम्बन्धित पोस्ट चाहिए तो आप हमारे website के Top Menu में जाकर प्राप्त कर सकते हैं।
NCERT Solutions for class 10 hindi chapter 4 Ehi Thaiyan Jhulni Ho Rama Question Answer
प्रश्न अभ्यास
पाठ्य-पुस्तक से
प्रश्न 1. हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानीमें ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
उत्तर : हमारे देश की आजादी की लड़ाई में सभी वर्गों व सभी धर्मों का योगदान रहा है, साथ ही समाज में उपेक्षित समझे जाने वाले वर्ग का भी योगदान कम नहीं रहा। इस पाठ के पात्र टुन्नू और दुलारी दोनों ही कजली गायक हैं जो समाज में कजली के दंगल में गाना गाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। दोनों ने आजादी के समय आन्दोलन में अपनी सामर्थ्य के अनुसार भरपूर योगदान दिया है।
टुन्नू : इस पाठ में टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का संगीत प्रेमी बालक है और वह दुलारी से अपमानित होकर उन दीवानों की टोली में शामिल हो जाता है जो विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के लिए वस्त्रों को एकत्रित कर रहे थे। खुफिया-पुलिस का रिपोर्टर अली सगीर ने टुन्नू को बूट से इस तरह ठोकर मारी कि वह अपनी जान से हाथ धो बैठा। इस तरह उसने अपना बलिदान दे दिया।
दुलारी : दुलारी भी टुन्नू की तरह कजली गायिका थी। विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाली टोली को कोरी धोतियों का बंडल दे देती है। वह टुन्नू द्वारा दी गई गांधी आश्रम की धोती को गर्व से पहनती है।
लेखक ने इस तरह समाज से उपेक्षित दोनों के योगदान को स्वतन्त्रता के आन्दोलन में महत्वपूर्ण माना है।
प्रश्न 2. कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
उत्तर : दुलारी अपने कर्कश स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थी। बात-बात पर तीर कमान की तरह ऐंठने वाली दुलारी के मन में अब टुन्नु के लिए कोमल भाव, करुणा और आत्मीयता उत्पन्न हो चुकी थी जो अव्यक्त थी और वह अनुभव कर रही कि टुन्नू के प्रति जो उसने उपेक्षा दिखाई थी वह कृत्रिम थी और उसके मन के कोने में टुन्नू का आसन स्थापित हो गया था और वह अनुभव कर रही थी कि उसके शरीर के प्रति टुन्नू के मन में कोई लोभ नहीं है। उसका सम्बन्ध शरीर से न होकर आत्मा से था। इसी कारण नए-नए वस्त्रों के प्रति मोह रखने वाली दुलारी विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाली टोली में टुन्नू को देखकर नए वस्त्रों के बंडल को दे देती है। उसके अन्दर पनप रहा आत्मीय भाव टुन्नू की मृत्यु पर छटपटा उठा और उसकी दी गई खादी की धोती को पहन कर टुन्नू के प्रति आत्मीय सम्बन्ध को प्रकट कर विचलित हो उठी।
प्रश्न 3. कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और परम्परागत लोक आयोजनों का उल्लेखकीजिए?
उत्तर : कजली दंगल भी दूसरे मनोरंजन आयोजनों की तरह होता है। इसमें दो दल इकट्ठे होकर गाने की प्रतियोगिता करते हैं और दोनों दल अपने अलग-अलग भावों में व्यंग्य शैली अपनाते हुए सवाल करते हैं, इसके जवाब में दूसरा दल भी व्यंग्य-शैली में उत्तर देता है और प्रश्न कर देता है। वाह-वाह करने के लिए दोनों दलों के साथ संगीतकार होते हैं। कभी-कभी इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से विशेष कार्यों के प्रति लोगों में उत्साह भरा जाता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले लोगों में देश-प्रेम की भावना को उत्पन्न करना, लोगों को उत्साहित करना, प्रचार करना इन दंगलों के मुख्य कार्य थे।
कजली दंगल की तरह समाज में कई अन्य प्रकार के दंगल किए जाते हैं। जैसे-
- रसिया-दंगल ब्रज-क्षेत्र में अधिक प्रचलित है।
- रागिनी-दंगल पश्चिमी उत्तर-प्रदेश और हरियाणा में अधिक प्रचलित है।
- संकीर्तन-दंगल जहाँ-तहाँ सम्पूर्ण भारत में इसकी परम्परा है।
- पहलवानों का कुश्ती-दंगल दंगल भी सम्पूर्ण भारत में होता है।
प्रश्न 4. दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर : दुलारी मुख्य रूप से कहे जाने वाले सामाजिक, सांस्कृतिक दायरे से बाहर है क्योंकि वह एक गौनहारिन है और गौनहारिन को सामाजिक प्रतिष्ठा का पात्र नहीं माना जाता है। उसका कार्य उपेक्षणीय है। वह सबसे अलग है। उसकी विशिष्ट प्रतिभाएँ इस प्रकार हैं।
- दुलारी नारी होते हुए भी पुरुषों के पौरुष को ललकारने की तमन्ना रखती है। वह पुरुषों की तरह दंड लगाती है और कसरत करती है। पहलवानों की तरह गर्व रखती है साथ ही स्वास्थ्य के लिएभिगोए चने खाती है। वह अबला नहीं है।
- दुलारी केवल मधुर स्वर के लिए ही नहीं जानी जाती है। वह प्रबुद्धा है। उसमें काव्य के रूप में तुरन्त सवाल-जवाबकरने की प्रतिभा है।
- दुलारी बात-बात पर तीर-कमान बन जाने वाली निर्भीक महिला है।
- दुलारी की पड़ोसिनें उसे कर्कश महिला मानती हैं। वह कर्कशा और क्रोधी है। टुन्नू जब दुलारी के घर धोती लेकर पहुँचता हैतो उसके प्रति करुण भाव रखते हुए भी बहुत खरी-खोटी सुनाती है। फेंकू को घर से बाहर कर चूल्हे पर बटलोही में चुर रही दाल को ठोकर मारकर गुस्से में उलट देती है और उसका दिल भट्टी की तरह सुलगता रहता है।
- टुन्नू के चले जाने पर उसकी लाई हुई धोती पर काजल से सने आँसुओं केधब्बे देखकर उसे उठाकर बार-बार चूमने लगती है। टुन्नू की मृत्यु पर उसकी आँखों से आँसुओं के बादल उमड़ पड़ते है। इस प्रकार वह भावुक और सहृदयता नारी भी है।
- दुलारी इकट्ठे हुए विदेशी नए वस्त्रों के बहिष्कार कर नव-जवानों की टोली को देदेती है, जबकि दूसरे बहिष्कार के नाम पर फटे-पुराने वस्त्र फेंक रहे थे। दुलारी गांधी आश्रम की बनी धोती को पहन कर देश-प्रेम की भावना व्यक्त करती है।
अतः अपने इन्हीं गुणों के कारण उपेक्षणीय होकर भी अति विशिष्ट है।
प्रश्न 5. दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
उत्तर : भादों मास की तीज पर खोजवाँ और बजरडीहा वालों के बीच कजली गाने का दंगल हुआ। उस समय दुक्कड़ पर गाने वालियों में दुलारी की बहुत प्रसिद्धि थी। उसमें काव्य के रूप में सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता थी। खोजवाँ वाले कजली दंगल में दुलारी के अपनी ओर होने से अपनी जीत के लिए पक्के हो गए थे। दूसरी ओर बजरडीहा वाले अपनी ओर से टुन्नु को लाए थे। उसके जीवन में दो-तीन ऐसे अवसर आ चुके थे। उसे भी पद्यात्मक शैली में प्रश्न उत्तर करने में कुशलता प्राप्त की थी। कजली दंगल में टुन्नू दुलारी की ओर हाथ उठाकर चुनौती के रूप में ललकार उठा। दुलारी मुस्कुराती हुई मुग्ध होकर सुनती रही। यहीं पर गायक के रूप में दुलारी और टुन्नू का परिचय हुआ।
प्रश्न 6. दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था- “तैं सरबउला बोल जिन्नगी में कब देखले लोट?…!” दुलारी केइस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या सन्देश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : कजली दंगल में सोलह-सत्रह वर्षीय टुन्नू ने ललकारते हुए दुलारी से कहा कि “रनियाँ लड परमेसरी लोट” (प्रामिसरी नोट) तो उत्तर में दुलारी ने कहा था-तै सर बउला बोल जिन्नगी में कब देखले लोट? अर्थात बढ़-चढ़कर मत बोल, तूने लोट कहाँ देखे हैं। उसका कहना था यजमान करने वाले पिताजी बड़ी मुश्किल से गृहस्थी चला रहे हैं। तेरा लोट से कहाँ वास्ता पड़ा है। दुलारी के इस कथ्य में युवा वर्ग के लिए सन्देश छिपा है कि उन्हें बढ़-चढ़कर व्यर्थ नहीं बोलना चाहिए। पता नहीं कब उनकी पोल खुल जाए। अतः अपनी औकात के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए।
प्रश्न 7. भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?
उत्तर : भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपनी सामर्थ्य से बढ़कर योगदान दिया। दुलारी एक सामान्य महिला थी। जब देश के दीवानों का दल विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रहा था तब दुलारी ने बारीक सूत की मखमली किनारी वाली बनी नयी कोरी धोतियों के बंडल को फेंक कर आंदोलन में योगदान दिया। देश के दीवानों की टोली में सम्मिलित हुए टुन्नू की मृत्यु पर टुन्नू की ही दी हुई गांधी आश्रम की धोती को पहन कर उसके प्रति श्रद्धांजली अर्पित की। इसी प्रकार टुन्नू भी देश के दीवानों की टोली में शामिल होकर आन्दोलन में अपनी भूमिका निभाया, और अपना बलिदान दे दिया। इस प्रकार उसका बलिदान भी लोगों को देश प्रेम के लिए प्रेरणा देता है। इस तरह दोनों का योगदान सराहनीय है।
प्रश्न 8. दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी? यह प्रेम दुलारी को देश-प्रेम तक कैसेपहुँचाता है?
उत्तर : दुलारी टुन्नू की काव्य प्रतिभा और मधुर स्वर पर मुग्ध थी। दुलारी के हृदय में कहीं उसने अपना स्थान बना लिया था। टुन्नू भी उस पर आसक्त था परन्तु उसके आसक्त होने का सम्बन्ध शरीरिक न होकर आत्मिक था। अतः दोनों के मध्य सम्बन्ध होने का कारण कला और कलाकार मन ही था। दुलारी के मन में टुन्नू के प्रति करुणा थी। टुन्नू ने खद्दर का कुरता, गान्धी टोपी पहनना शुरू किया और दुलारी को गान्धी आश्रम की बनी धोती देता है। अन्त में टुन्नु देश के दीवानों की टोली में सम्मिलित होकर अपने प्राण न्यौछावर कर देता है। इन सब घटना को देखकर दुलारी भी प्रेरित हो उठती है। दुलारी का देश के दीवानों को विदेशी नए वस्त्र देना, टुन्नू की मृत्यु पर विचलित हो जाना, उसकी दी हुई खादी की धोती पहनकर उसके मरने के स्थान पर जाना और टाउन हाल में उसकी श्रद्धांजलि में गाना, ये सभी देश-प्रेम की भावना को व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 9. जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परन्तु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनीकोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?
उत्तर : जब देश के दीवानों की टोली चादर के चार कोनों को पकड़ विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने के उद्देश्य से विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के लिए इकट्ठा कर रहे थे। उस फैले हुए चादर में लोग वस्त्र तो फैंक रहे थे परन्तु फटे-पुराने थे। उनमें देश प्रेम कम दिखावा अधिक था। दूसरी ओर दुलारी के मन में देश प्रेम की भावना ने इतना जोर पकड़ लिया था कि बिना किसी मोह के विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करते हुए विदेश की बनी उन सड़ियों को फेंक दिया जिनकी अभी तक तह भी नहीं खुली थी। उसकी मानसिकता में एकदम परिवर्तन आ गया था। मन में देश-प्रेम की भावना पूर्ण-रूपेण अपनी जगह बना चुकी थी। उसका विदेशी वस्त्रों के प्रति मोह समाप्त हो चुका था। जिस रास्ते पर टुन्नू चल रहा था उस पर चलकर उसने टुन्नू के प्रति आत्मीय-स्नेह को स्पष्ट किया।
प्रश्न 10. “मन पर किसी का बस नहीं; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रतिकिशोर-जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परन्तु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
उत्तर : “मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।”-यह टुन्नू के किशोर मन को व्यक्त करता है। टुन्नु जहाँ सोलह-सत्रह वर्षीय किशोर था वही दुलारी यौवन के अस्ताचल पर खड़ी थी। इस तरह तो टुन्नू का शारीरिक सौन्दर्य के प्रति कोई आकर्षण नहीं था। टुन्नू के मन में दुलारी के शरीर के प्रति लोभ नहीं बल्कि पवित्र तथा सम्मानीय स्नेह था। होली के त्योहार पर दुलारी को सूती खादी साड़ी देने पर दुलारी ने जब उसकी उपेक्षा की तो उसने कहा कि मैं प्रतिदान में तुम से कुछ मांग तो नहीं रहा।
दुलारी के तिरस्कार करने पर यही कहता है-मन पर किसी का बस नहीं है। वह रूप या उमर का कायल नहीं होता है। टुन्नू के विवेक ने दुलारी के प्रति बढ़ते हुए प्रेम को दूसरी दिशा दी और देश प्रेम की ओर चल पड़ा। वह देश के दीवानों के साथ कार्य करने लगा और विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाली टोली में सम्मिलित हो गया। इस देश-प्रेम की भावना के कारण अली-सगीर के गालियाँ देने पर प्रतिवाद करने की हिम्मत कर बैठता है और उसके ठोकर मारने पर मृत्यु को प्राप्त होता है। इस तरह उसका बलिदान अंग्रेज खुफिया पुलिस का विरोध करने पर हुआ। उसका देश-प्रेम सफल हुआ।
प्रश्न 11. ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ (Ehi Thaiyan Jhulni Ho Rama) का प्रतीकार्थ समझाइए।
उत्तर : इसका शाब्दिक अर्थ यह है कि इसी जगह पर मेरी नाक की झुलनी (लौंग) खो गई है। इस बात से यह स्पष्ट होता है कि थाने आकर मेरी नाक की झुलनी खो गई है अर्थात मेरी प्रतिष्ठा जा रही है। दुलारी को थाने में बुलाकर उसकी इच्छा के विपरीत गाने के लिए विवश किया गया। इस तरह वह अपनी प्रतिष्ठा का खोना मानती है। दुलारी अपनी प्रतिष्ठा टुन्नू को अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार कर चुकी थी जिसे वहीं अली सगीर ने बूट की ठोकर मारी थी और वह उस चोट से ही वहाँ गिर गया और मर गया था। इसलिए दूसरा अर्थ है कि मेरी नाक की लौंग, मेरी प्रतिष्ठा अप्रत्यक्ष रूप से मेरा सुहाग (टुन्नू) यहीं पर मार दिया गया है अर्थात् मेरी सबसे प्रिय चीज़ खो गई है।
इस पोस्ट के माध्यम से हम कृतिका भाग-2 के कक्षा-10 का पाठ-4 (NCERT Solutions for Class-10 Hindi Kritika Bhag-2 Chapter-4) केएही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा पाठ का प्रश्न-उत्तर (Ehi Thaiyan Jhulni Ho Rama Question Answer) के बारे में जाने जो की शिवप्रसाद मिश्र ( रुद्र ) (Shivprasad Mishra – Rudra) द्वारा लिखित हैं । उम्मीद करती हूँ कि आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया होगा। पोस्ट अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूले। किसी भी तरह का प्रश्न हो तो आप हमसे कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकतें हैं। साथ ही हमारे Blogs को Follow करे जिससे आपको हमारे हर नए पोस्ट कि Notification मिलते रहे।