Bharatendu Harishchandra Jivan Parichay | भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जीवन परिचय

WhatsApp Icon Join Our WhatsApp Group

Bharatendu Harishchandra Jivan Parichay | भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जीवन परिचय

Bharatendu Harishchandra Jivan Parichay

पूरा नाम बाबू भारतेंदु हरिश्चंद्र
पिता जी का नाम बाबू गोपालचन्द्र गिरिधरदास
जन्म 9 सितम्बर वर्ष 1850
जन्म स्थल काशी, उत्तर-प्रदेश
मृत्यु 6 जनवरी, वर्ष 1885
मृत्यु स्थल वाराणसी, उत्तर-प्रदेश
अभिभावक बाबू गोपालचंद्र
प्रमुख रचनाएँ प्रेममालिका, प्रेम माधुरी, प्रेम-तरंग , अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा, कृष्णचरित्र
विषय विषय आधुनिक हिन्दी-साहित्य

 

          आज हम आप लोगों को भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bharatendu Harishchandra) जी का जीवन परिचय (Jivan Parichay) के बारे में बताने जा रहे हैं, यदि आपको और भी हिन्दी से सम्बन्धित पोस्ट चाहिए तो आप हमारे website के top Menu में जाकर प्राप्त कर सकते है।

          हिन्दी साहित्य में भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bharatendu Harishchandra) का आविर्भाव एक ऐतिहासिक घटना थी। वे ऐसे समय में भारतीय साहित्य गगन के इन्दु बनकर उदित हुए थे, जब प्राय: सभी क्षेत्रों में युगान्तरकारी परिवर्तन हो रहे थे। हिन्दी के प्रति लोगों में आकर्षण कम था, क्योंकि अंग्रेज़ी की नीति से हमारे साहित्य पर बुरा असर पड़ रहा था और हम ग़ुलामी का जीवन जीने के लिए मजबूर किये गये थे। भारतीय साहित्य भी किसी साहित्यकार की प्रतीक्षा कर रहा था. तभी भारतेंदु हरिश्चंद्र। जी का जन्म हुआ। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम हरिश्चंद्र (Harishchandra)था, भारतेंदु(Bharatendu) उनकी उपाधि थी। हिन्दी साहित्य का कोई भी अंग उनसे अछूता नहीं रहा. निबन्ध, नाटक, इतिहास, आलोचना आदि विधाओं की रचना उन्ही के कर-कमलों द्वारा हुई। एक युग-प्रवर्तक सहित्यकार के रुप में उन्होंने हिन्दी साहित्य-जगत में अपार ख्याति अर्जित की थी।

Bharatendu Harishchandra Jivan Parichay  | भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जीवन परिचय

WhatsApp Icon Join Our WhatsApp Group

          भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bharatendu Harishchandra) जी का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ। इनके पिता जी बाबू गोपालचन्द्र गिरिधरदास ब्रजभाषा के एक प्रसिद्ध कवि थे। बाल्यकाल में 10 वर्ष की आयु में ही ये माता-पिता के सुख से वंचित हो गये थे। हरिश्चंद्र  जी की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई, जहाँ उन्होंने हिन्दी, उर्दू, बंगला, एंव अंग्रेजी का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने के लिए क्वीन्स कॉलेज में प्रवेश लिया, किन्तु काव्य रचना में रुची होने के कारण इनका मन पढ़ाई में लग सका और परिणामस्वरुप उन्होंने शीर्घ ही कालेज छोड़ दिया । भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का विवाह 13 वर्ष की अल्पआयु में ही हो गया था। इनकी पत्नी का नाम मन्नो देवी था। काव्य रुची रखने के साथ-साथ इनकी रुची यात्राओं में भी थी। जब उन्हें कभी भी समय मिलता तो वे यात्राएँ करने के लिए निकल जाया करते थे। भारतेंदु जी वाल्य-काल में ही काव्य-रचनाएँ करने लगे थे। अपनी रचनाओं में ये ब्रजभाषा का प्रयोग करते थे। कुछ ही समय के बाद भारतेन्दु (Bharatendu) का ध्यान हिन्दी गद्य की ओर आकर्षित हुआ उस समय हिन्दी गद्य की कोई निश्चित भाषा नहीं थी। हरिश्चंद्र जी का ध्यान इस अभाव की ओर आकृष्ट हुआ, जिस समय बंगला गद्य साहित्य विकसित अवस्था में था। भारतेन्दु जी ने बांग्ला नाटक विद्यासागर  का हिन्दी में अनुवाद किया और उनमें सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करके हिन्दी भाषा के नवीन रुप का बीजारोपण किया।

साहित्यिक योगदान

          वर्ष 1868 ई. में भारतेन्दु (Bharatendu) जी ने कवि-वचन-सुधा नामक पत्रिका का सम्पादन प्रारम्भ किया। इसके पाँच वर्ष बाद वर्ष 1873 ई. में इन्होंने एक दूसरी पत्रिका हरिश्चन्द्र (Harishchandra) मैगजीन का सम्पादन प्रारम्भ किया। आठ अंक प्रकाशित होने के बाद इस पत्रिका का नाम हरिश्चंद्र (Harishchandra) पत्रिका हो गया। हिन्दी गद्य का वास्तविक रुप इसी पत्रिका के द्वारा प्रकाश में आया और हिन्दी गद्य को नया रुप प्रदान करने का श्रेय इसी पत्रिका को दिया जाता है। भारतेन्दु जी ने हिन्दी से संस्कृत एवं उर्दू-फारसी आदि के जटिल शब्दों को निकालकर सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग प्रारम्भ किया।  इसी कारण हिन्दी को एक नया रुप मिला और यह भाषा जनसामान्य भावनाओं के जुड़ गयी।

          भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने नाटक, निबन्ध तथा यात्रावृत आदि विभिन्न विधाओं में गद्य-रचना की। इसके समकालीन सभी लेखक इन्हें अपना आदर्श मानते थे और इनसे दिशा-निर्देंश प्राप्त करते थे। सामाजिक, राजनीतिक, एवं राष्ट्रीयता की भावना पर आधारित अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतेन्दुजी ने एक नवीन चेतना उत्पन्न की। इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर ही तत्कालीन पत्रकारों ने वर्ष 1880 में इन्हें भारतेन्दु की उपाधि से सम्मानित कर इनके साहित्यिक योगदान को स्वीकार किया।

          भारतेंदु जी बड़ी ही उदार और दानी पुरुष थे। अपनी उदारता के कारण शीघ्र ही उनकी आर्थिक दशा शोचनीय हो गई और वे ऋणग्रस्त हो गए। ऋणाग्रस्त के समय में ही क्षय रोग के भी शिकार को गये। उन्होंने क्षय रोग के मुक्त होने के लिए हर सम्भव उपाय किया पर वे इस रोग से मुक्त न हो सके और इसी कारण वर्ष 1885 ई. में उनकी मृत्यु हो गयी। जब उनका स्वर्गवास हुआ तब वे मात्र 35 वर्ष के थे। अपने इस छोटे जीवन में ही उन्होंने हिन्दी साहित्य की जो सेवा की, उसके लिए हिन्दी साहित्य सदैव उनका ऋणी रहेगा।

रचनाएँ और कृतिया

          भारतेन्दु जी ने हिन्दी को अपनी रचनाओं का अप्रतीम कोश प्रदान किया जो इस प्रकार है।

नाटक –  सत्य हरिश्चन्द्र,  नीलदेवी,  श्रीचन्द्रवली,  भारत-दुर्दशा,  अँधेरी नगरी,  सती-प्रलाप,   प्रेम-योगिनी,  रत्नावली,   भारत-जननी,   मुद्राक्षस

निबन्ध-संग्रह –  सुलोचना, परिहास-वंचक,  मदालसा लीलावती

WhatsApp Icon Join Our WhatsApp Group

इतिहास – कश्मीर-कुसुम,  महाराष्ट्र  देश का इतिहास,  अग्रवालों की उत्पत्ति

यात्रा-वृत्त –  सरयू पार की यात्रा,  लखनऊ की यात्रा

जीवनियाँ –  सूरदास की जीवनी, जयदेव, महात्मा मुहम्मद आदि

हिन्दी-साहित्य में उनका स्थान

          भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bharatendu Harishchandra) ने हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया। साहित्य के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के कारण ही इन्हें आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य का जनक युग-निर्माता साहित्यकार तथा आधुनिक हिन्दी साहित्य का प्रवर्तक कहा जाता है। भारतीय साहित्य में इन्हें युगद्रष्टा, युग-जागरण के दूत और एक युग-पुरुष के रुप में जाना जाता है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वर्ष 1868 से 1900 तक की अवधि को इन्ही के नाम पर भारतेन्दुकाल के नाम से जाना जाता है।

          इस पोस्ट के माध्यम से हमने जाना भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bharatendu Harishchandra) जी के जीवन परिचय (Jivan Parichay) के बारे में। । उम्मीद करती हूँ कि आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया होगा। पोस्ट अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूले। किसी भी तरह का प्रश्न हो तो आप हमसे कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकतें हैं। साथ ही हमारे Blogs को Follow करे जिससे आपको हमारे सभी नए पोस्ट का  Notification मिलते रहे।

आपको यह सभी पोस्ट Video के रूप में भी हमारे YouTube चैनल  Education 4 India पर भी मिल जाएगी।

[embedyt] https://www.youtube.com/watch?v=5xKofr00HKY[/embedyt]

यह भी पढ़ें  

मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय
जयशंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय
ध्रुवस्वामिनी कथासार II जयशंकर प्रसाद
नाखून क्यों बढ़ते हैं ? – सारांश
निर्मला कथा सार मुंशी प्रेमचंद
गोदान उपन्यास मुंशी प्रेमचंद
NCERT / CBSE Solution for Class 9 (HINDI)

Leave a Comment

WhatsApp Icon Join Our WhatsApp Group
WhatsApp Icon Join Our WhatsApp Group
x
पेपर कप व्यापार: 75 हजार रुपये महीना की बेहतरीन कमाई का अवसर भारतीय पोस्ट ऑफिस फ्रेंचाइजी: घर बैठे कमाई का सुनहरा अवसर ट्रांसक्रिप्शन सर्विसेज से कमाए लाखों रुपए महीना! जाने डिटेल Airbnb से खाली कमरे को लिस्ट करें और महीने का ₹30000 कमाएं मछली पालन व्यवसाय: ₹25,000 में निवेश करें, हर साल कमाएं ₹6 लाख!